Book Title: Aptavani Shreni 05
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 213
________________ १८२ आप्तवाणी-५ चाहिए! यहाँ एक अक्षर भी उल्टा-सीधा नहीं बोलना चाहिए। अभी यदि मामलतदार के पास गए हों तो उस घड़ी चुप होकर बैठे रहेंगे, वहाँ कैसे एक अक्षर भी नहीं बोलते! और ये तो 'ज्ञानी पुरुष'! उनके पास तो बोलते होंगे? 'ज्ञानी पुरुष' तो देहधारी परमात्मा कहलाते हैं !!! वहाँ सभी वस्तुएँ प्राप्त हों, ऐसा है! खुद अपनी ही भक्ति प्रश्नकर्ता : हम इन्वाइट नहीं करें, फिर भी अपने आप वस्तु आती है। इस नींद को लाना पड़ता है? वह अपने आप ही आती है, वैसे ही यह ज्ञान भी अपने आप ही आएगा? । दादाश्री : ये रिलेटिव वस्तुएँ इन्वाइट करने जैसी नहीं हैं। इन्वाइट करने जैसी वस्तु क्या है? कि हमें जिस गाँव जाना हो, उसका ज्ञान जानने जैसा है। बाकी दूसरा सब तो अपने आप ही आएगा। आज धर्म में जो सारे परुषार्थ चल रहे हैं, वे तो खेतीबाडी करते हैं, बीज डालते हैं उसका पाँच सौ-पाँच सौ गुना मिलता रहता है। प्रश्नकर्ता : अपने इस मार्ग में भी थोड़ी खेतीबाड़ी है न? अपने में भी आरती करते हैं न? दादाश्री : अपने में खेतीबाड़ी होती होगी? खुद खुदा हो गया न ! अपने यहाँ जो आरती है वह खुद की आरती है, यहाँ हर एक व्यक्ति खुद अपनी ही आरती कर रहा है। अपने यहाँ जो पद गाए जाते हैं, वह खुद की ही कीर्तन भक्ति है! अपने यहाँ खुद के अलावा रिलेटिव वस्तुएँ हैं ही नहीं! प्रश्नकर्ता : खुद की कीर्तनभक्ति करनेवाला कौन? दादाश्री : खुद ही, खुद! प्रश्नकर्ता : वह कौन-सा भाग है? दादाश्री : वह प्रज्ञाशक्ति है, वह काम कर रही है!

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