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आप्तवाणी-५
प्याले फूट जाएँ या कुछ भी हो, फिर भी आप पर असर नहीं होगा। आपको असर होता है?
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प्रश्नकर्ता : हाँ, होता है ।
दादाश्री : तो वह प्रकाश नहीं है। यह तो पूरा अँधेरा है। अब, अहंकार का धर्म क्या है?
प्रश्नकर्ता : अहम्भाव रखना, वह।
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दादाश्री : नहीं। जहाँ देखे वहाँ पर अहम्, 'मैंने किया' करता है बस! अहंकार सिर्फ अहंकार ही करता रहता है कि 'मैंने किया, मैंने भोगा ! ' यह आम खाया, उस विषय को जीभ भोगती है, बुद्धि भोगती है या अहंकार भोगता है?
प्रश्नकर्ता : अहंकार भोगता है ।
दादाश्री : अब जीभ स्वाद लेती है और अहंकार सिर्फ कहता है कि 'मैंने ऐसा किया!' आत्मा में अहंकार नाम की कोई वस्तु ही नहीं है, परन्तु यह खड़ी हो गई है, और अपने-अपने धर्म में ही है फिर ! अहंकार करने की जगह पर निरंतर अहंकार करता ही रहता है । कोई अहंकार पर चोट करे, अपमान करे तो तुरन्त अहंकार भग्न हो जाता है या नहीं हो जाता? मान-अपमान दोनों का असर होता है न? यानी अहंकार, अहंकार के धर्म में है।
यानी कान, कान के धर्म में है, आँख, आँख के धर्म में है, नाक, नाक के धर्म में है, सब अपने-अपने धर्म में हैं । अब महावीर भगवान के भी आँखें, कान, नाक सभी अपने-अपने धर्म में थे। उनका भी मन, मन के धर्म में, चित्त, चित्त के धर्म में था । उनकी बुद्धि और अहंकार खत्म हो चुके थे । आपमें भी ये सब अपने-अपने धर्म में ही हैं। सिर्फ 'आत्मा' ही अपने धर्म में नहीं है । 'आत्मा' अपने खुद के धर्म में आ जाए तो बुद्धि और अहंकार खत्म हो जाएँगे । उसका कारण आपको समझाता हूँ।