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आप्तवाणी-५
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होता। यह जो दिखता है वह सब भ्रांति है। ये अवस्थाएँ हैं, अवस्थाओं का नाश होता है। बुढ़ापे की अवस्था, युवावस्था, उन सबका नाश होता रहता है, उनमें जो आत्मा था, वह वैसे का वैसा ही रहता है।
प्रश्नकर्ता : जीवात्मा मरने के बाद वापिस आता है न?
दादाश्री : ऐसा है कि इन 'फ़ॉरेन'वालों का, मुस्लिम का वापिस नहीं आता, परन्तु आपका वापिस आता है ! यानी आपके ऊपर भगवान की कृपा है! यहाँ मर गया, तब वहाँ दूसरी योनि में प्रविष्ट हो जाता है। 'फ़ॉरेन'वालों का आत्मा वापिस नहीं आता, वास्तव में वह वैसा नहीं है। वह तो उनकी मान्यता ऐसी है कि यहाँ से मरा तो मर गया! वास्तव में वापिस ही आता है परन्तु उन्हें समझ में नहीं आता। वे लोग पुनर्जन्म को समझते ही नहीं है।
प्रश्नकर्ता : यदि ऐसी कोई घटना हो कि अपनी बहन या पत्नी को कोई उठाकर ले जा रहा हो, तब हमें क्या करना चाहिए? वीतराग रहना चाहिए? ज्ञाता-दृष्टा रहना चाहिए?
दादाश्री : आपके हाथ में है ही क्या? यह 'डिस्चार्ज' है। उस समय क्या से क्या हो जाएगा! क्या-क्या गालियाँ दे दोगे! वह तो यदि हमारा उठा ले जाए तो हम वीतरागभाव से रहेंगे। आपका तो सामर्थ्य ही नहीं है न? आप तो हिल उठोगे।
प्रश्नकर्ता : हमारे पास 'टाइम' होता है, इच्छा होती है फिर भी आलस्य रहता है, ऐसा क्यों?
दादाश्री : दो प्रकार के लोग होते हैं। काम में आलस करें, वैसे लोग होते हैं और काम में जल्दबाजी करें, ऐसे लोग होते हैं। जल्दबाज़ीवालों में भी कुछ ठीक से नहीं हो पाता। 'नॉर्मेलिटी' में रहे वह अच्छा है।
आपको तो 'चंदूलाल' को टोकना चाहिए : 'आप ऐसा आलस्य क्यों करते हो? बिना काम के टाइम बिगाड़ते हो।' हम 'चंदूलाल' को टोकें,