________________
आप्तवाणी-५
तब फिर आपको नींद आएगी क्या? यदि नींद खुद के हाथ में नहीं है, तो दूसरी कौन-सी वस्तु खुद के हाथ में है? जल्दी उठना हो तो अलार्म रखना पड़ता है?
प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री : वह भी खुद के हाथ में नहीं है! संडास जाना भी खद के हाथ में नहीं है। कुछ भी अपने हाथ में नहीं है। यह तो कुदरती रूप से अपने आप चलता रहता है। उसके साथ हम 'एडजस्ट' हो जाते हैं कि 'यह मैं कर रहा हूँ।' यह हर एक वस्तु दूसरी शक्ति के अधीन चलती है। ईश्वर भी कर्त्ता नहीं है और आप भी इसके कर्ता नहीं हो। इसके कर्ता आप हो, ऐसा मानते हो, वही अगले जन्म का बीज है। एक दिन यह सब समझना तो पड़ेगा ही न?
इसलिए अखा भगत ने कहा है कि,
'कर्त्ता मिटे तो छूटे कर्म, ए छे महाभजननो मर्म', 'जो तू जीव तो कर्त्ता हरि, जो तू शिव तो वस्तु खरी।'
किसी जीव को करने की शक्ति है ही नहीं, यह कर्त्ता किस चीज़ के बन बैठे हैं? वास्तव में तो स्वपरिणाम के कर्ता है। अब परपरिणाम का कर्ता कोई हो सकता है क्या? ये जन्म हुआ, तब से मरण तक सबकुछ अनिवार्य है, और वह परपरिणाम स्वरूप है! उसके हम कर्त्ता समझते हैं, इसलिए अगले जन्म का बीज पड़ता है।
व्यवहार आत्मा : निश्चय आत्मा अज्ञानता में आत्मा (व्यवहार आत्मा) अनौपचारिक व्यवहार से द्रव्यकर्म का कर्ता है। अनौपचारिक व्यवहार अर्थात् जिसमें उपचार भी नहीं करना पड़ता, ऐसे व्यवहार से द्रव्यकर्म का कर्ता है। और स्वरूप का भान हो जाने पर हमेशा के लिए स्वपरिणामी है। उसमें वह कुछ विकृत नहीं हो गया। विकृति यदि हो जाए तो बदल ही जाएगा, खत्म हो जाएगा। इतना ही समझ में आ जाए तो काम हो जाएगा।