Book Title: Aptavani Shreni 05
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 211
________________ १८० आप्तवाणी-५ भी हर्ज नहीं और रहने दो तो भी हर्ज नहीं है। हमें लूट ले तो भी हर्ज नहीं है। प्रश्नकर्ता : आपमें कितने कर्मों का अभाव है? दादाश्री : हममें सभी कर्मों का अभाव है। सिर्फ इस देह के पोषण के लिए ज़रूरत हो उतना होता है। वह कर्म भी संवरपूर्वक की निर्जरा के रूप में होता है। दूसरा कोई हमें विचार ही नहीं आता। प्रश्नकर्ता : यानी कि आपको अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन प्रकट हो चुका है? दादाश्री : सबकुछ प्रकट हो चुका है। सिर्फ चार डिग्री की ही कमी है। जितना केवळज्ञानी को 'ज्ञान' में दिखता है, उतना हमें समझ में आ गया है। उनका केवळज्ञान कहलाता है, हमारा केवळदर्शन कहलाता है। इसलिए हम कहते हैं कि पूरे जगत् के बारे में यहाँ पर पूछा जा सकता है। प्रश्नकर्ता : 'केवळज्ञान' के बिना 'केवळदर्शन' हो सकता है? दादाश्री : क्रमिक मार्ग में केवळज्ञान' के बिना केवळदर्शन' नहीं हो सकता। 'अक्रममार्ग' में 'केवळदर्शन' हो जाता है, फिर 'केवळज्ञान' होने तक कुछ समय लगता है। ये सब बुद्धि के विषय नहीं हैं, यह ज्ञान का विषय है। प्रश्नकर्ता : आप साक्षात्कारी पुरुष हैं, अब आप मंदिरों में जाओ, उससे मंदिर में जाने के लिए प्रतिष्ठा खड़ी नहीं होती? दादाश्री : हम जहाँ जाते हैं, वहाँ पर सभी जगह दर्शन करने जाते हैं। जिनालय में, महादेवजी के मंदिर में, माताजी के मंदिर में, मस्जिद में, सभी जगह दर्शन करने जाते हैं। हम नहीं जाएँ तो लोग भी नहीं जाएँगे। उससे गलत प्रथा पड़ेगी। हमसे गलत प्रथा नहीं पड़े। उसकी हम पर जिम्मेदारी होती है। लोगों को किस तरह शांति हो, कैसे सुख हो,

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