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आप्तवाणी-५
बनते जाते हैं। जिनका निदिध्यासन करें, उनके जैसा हुआ जाता है। चित्त ठिकाने पर रहे तो निदिध्यासन हो सकता है।
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अध्यात्म का वातावरण
प्रश्नकर्ता: कोई राजा - महाराजा के वहाँ या किसी अच्छी जगह पर जन्म ले, तो अध्यात्म में आगे बढ़ेगा न ?
दादाश्री : हाँ। राजा-महाराजा के वहाँ जन्म ले और दूसरा यहाँ अच्छे घर में जन्म ले कि जहाँ पर, जहाँ जाए वहाँ इज़्ज़त से रखें । ससुराल में जाए तो वहाँ पर भी मान सहित रखें। जिसका बचपन से अपमान होता रहता है, वह मन में निश्चित करता है कि मुझे चाहे जिस तरह से इन लोगों के पास से मान लेना है । तब उसका ध्येय बदल गया और वह मान की तरफ़ चला जाता है। उसे यह मान का माल पुसाता है। वर्ना दूसरी भीख हो, उसे वह नहीं पुसाता ।
इस हिन्दुस्तान में जन्म हुआ, वह अनंत जन्मों के आधार पर हुआ है। बाकी फ़ॉरेनवाले तो अध्यात्म में पुनर्जन्म समझते ही नहीं। विकल्पों से संसार में कर्मबीज
यहाँ शीशमहल हो और वहाँ हम अकेले खड़े हों तो हमें डेढ़ सौ दिखेंगे ! ऐसा है यह जगत् ! विकल्प किया कि दिखता है । विकल्प के प्रतिस्पंदन आते हैं ये ।
प्रश्नकर्ता : विकल्प के प्रतिस्पंदन आते हैं, तो फिर संकल्प का क्या परिणाम है?
दादाश्री : संकल्प का कुछ लेना-देना नहीं है। विकल्पों के ही प्रतिस्पंदन आते हैं।‘संकल्प' का अर्थ 'मेरा' हुआ। विकल्प करने के बाद कोई वस्तु हमारी हो जाती है । तब हम संकल्प करते हैं कि यह मेरी है 1 विकल्प से ही यह सब खड़ा हुआ है। अर्थात् संकल्प बाधक नहीं है, विकल्प ही बाधक है। निर्विकल्प सबकुछ मिटा देता है उसका । यह तो विकल्प है, इसलिए संकल्प खड़ा हुआ । निर्विकल्प हो जाए तो संकल्प