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आप्तवाणी-५
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तरीका बदलो, वेदन का इसलिए अब आप तरीका बदलो तो वेदना कम होगी, वैसे-वैसे अंदर से अधिक सुख आएगा, क्योंकि बाहर उलझता है तो अंदर से सुख आना कम हो जाता है। आप 'चंदूभाई' को दर्पण दिखाओ, ऐसे हाथ-वाथ फेरकर कहो, 'हम हैं और आप हो। दो हैं, वह तो पक्का है न? उसमें बनावट नहीं है न?'
प्रश्नकर्ता : नहीं, दो ही हैं।
दादाश्री : ये 'पड़ोसी' कुछ जानते नहीं हैं, वह बात भी पक्की है न? और आप जानकार हो। पड़ोसी को कुछ मालूम नहीं कि सिर दुखा। मालूम आपको है। इसलिए आप कहना कि, 'सिर दुखा वह हम जानते हैं। वह अभी ठीक हो जाएगा, शांति रखो!' फिर कंधा थपथपा देना। पड़ोसी को तो हमें सँभालना ही चाहिए न? और पूरणपूरी अच्छी हो, शुद्ध घी हो, तो दो खिला भी देना! 'खाकर सो जाओ', कहना। पाडाने वांके पखाली ने डाम (भैंसे की भूल की सज़ा चरवाहे को) किसलिए?
प्रश्नकर्ता : इसमें भैंसा कौन है?
दादाश्री : सारा मन का दोष है इसमें। मन की चंचलता के कारण पेट बेचारे को भूखे मरना पड़ता है। मन भैंसा है इसमें, पेट चरवाहा है। दोष मन का है और लोग पेट को दंड देते हैं। पकौड़े-जलेबी देखी तो मन आउट ऑफ कंट्रोल हो जाता है। इसलिए पेट में गैस हो जाती है। फिर दूसरे दिन तबियत बिगड़े, तब फिर उपवास करना पड़ेगा। फिर धर्म के नाम पर उपवास करे या चाहे जिस नाम पर, परन्तु उपवास तो करना पड़ेगा न!
सम्यक् तप
भगवान ने उणोदरी तप कितना अच्छा बताया है! दो भाग भोजन, एक भाग पानी का और एक भाग हवा का, इस तरह चार भाग करके खा लेना चाहिए।