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आप्तवाणी-५
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लिफ्ट में बैठे।
'ज्ञानी' मिल जाएँ तो मोक्ष हथेली में है और नहीं मिलें तो करोड़ों जन्मों तक भी ठिकाना नहीं पड़े!
प्रश्नकर्ता : ज्ञानी भी सम्यक्ज्ञानी होने चाहिए न? उन्हें सच्ची समझ होनी चाहिए न?
दादाश्री : हाँ, सम्यक्ज्ञान आपको भी होना चाहिए, तभी मोक्ष होगा। सम्यक्दर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक्चारित्र सबकुछ ही हो जाएगा, तब मोक्ष होगा। ऐसे ही मोक्ष नहीं हो जाता।
प्रश्नकर्ता : हमें भी मोक्ष का स्वाद चखाएँगे न?
दादाश्री : हाँ, चखाऊँगा। सभी को चखाऊँगा। जिसे चखना हो उसे चखाऊँगा।
अंतर का भेदन हुए बिना उपजे नहीं अंतरदृष्टि
प्रश्नकर्ता : 'ज्ञानी पुरुष' ऐसा कहते हैं कि आपको अंदर ही देखते रहना है। तो हमें अंदर क्या देखना है?
दादाश्री : वह जो कहा हुआ है, वह सापेक्ष वचन है। जिसे आंतरिक ज्ञान हो चुका हो, उसे अंदर देखना है और जिसे बाह्य ज्ञान हुआ हो, उसे बाहर देखना है। अब बाह्यज्ञान हुआ हो और अंदर देखे तो क्या दिखेगा
उसे?
प्रश्नकर्ता : बाहर का ही दिखेगा।
दादाश्री : इसलिए मेरा कहना यह है कि यह जो वचन कहा है वह सापेक्ष वचन है। जिसे अंतर का कोई कुछ ज्ञान हुआ है, अंतर की कोई बात सुनी है, और अंतर का कुछ भेदन हुआ है, उसे अंदर देखना है। और अंतर का भेदन नहीं हुआ हो तो अंदर क्या देखोगे?
प्रश्नकर्ता : हमें कोई विचार आते हों वे?