Book Title: Aptavani Shreni 05
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

View full book text
Previous | Next

Page 145
________________ ११४ आप्तवाणी-५ दादाश्री : हाँ, ज्ञान के बिना वह वर्तन में नहीं आता। 'समझ' अर्थात् अन्डिसाइडेड बात। ___ मेरी बात आप पर ज़बरदस्ती उँडेलनी नहीं है। आपको खुद को ही समझ में आना चाहिए। मेरी समझ मेरे पास है। ज़बरदस्ती जोर देकर तो कोई काम नहीं होता। आपको वह समझ में आ जाए फिर आप उस 'समझ' से चलोगे। ज्ञान में कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है। समझने की ज़रूरत है। ज्ञान में और 'समझ' में कुछ फर्क होता होगा क्या? मेरे पास से आप बात को समझ लो, वह 'समझ' धीरे-धीरे ज्ञान के रूप में परिणामित होगी। ज्ञान जानते ज़रूर हैं, परन्तु वर्तन में नहीं आता, उसे 'समझ' कहते हैं। ज्ञान की माता कौन है? 'समझ' है। माता के बिना पुत्र उत्पन्न नहीं होता न? या कोई पुत्र ऊपर से टपका है? इसलिए माता तो चाहिए न? ज्ञान की माता 'समझ' है। वह 'समझ' कहाँ से प्राप्त होगी? वह 'ज्ञानी' के पास से समझो। शास्त्रों के पास से समझो तो शास्त्रों के पास से पूरी समझ नहीं मिलती, परन्तु थोड़ी ही समझ मिलती है। हम यह 'ज्ञान' देते हैं, वह 'केवळदर्शन' है। इसलिए उसमें सारी ही 'समझ' आ गई। अब 'समझ' में से वर्तन उत्पन्न होता है। परन्तु 'समझ' ही नहीं हो तो? वर्तन कभी भी नहीं आएगा। पूर्ण 'समझ', वह केवळदर्शन कहलाती है और वर्तन में आए वह केवळज्ञान कहलाता है। केवळज्ञान पूर्णाहुति है और केवळदर्शन, वह केवळज्ञान की बिगिनिंग (शुरूआत) है। समझ किसे कहते हैं कि ठोकर न लगे (चिंता, कषाय, मतभेद नहीं हों)। पूरा दिन ठोकर खाता रहता है और मैं समझता हूँ, जानता हूँ, करता है। तो भाई, समझ किसे कहता है? समझ और 'ज्ञान' में फर्क क्या है? जो समझ वर्तन में नहीं आए, तब तक उस ज्ञान को 'समझ' कहा जाता है। वह समझ धीरे-धीरे 'ऑटोमेटिकली' ज्ञान के रूप में परिणामित होती है। वर्तन में आए तब जानना कि यह ज्ञान है, यानी कि तब तक समझते रहो।

Loading...

Page Navigation
1 ... 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216