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आप्तवाणी-५
दादाश्री : सर्व शुद्धात्मा हो तो संचालन होगा ही नहीं। इसमें से सिद्ध होना है। इन मनुष्यों में से धीरे-धीरे सिद्ध होना है। उसमें कोई पूरी दुनिया में से एक-दो सिद्ध होते हैं। फिर वापिस थोड़े समय बाद एकाधदो सिद्ध होते हैं। यानी कि सिद्ध होना इतना आसान नहीं होता। सिद्ध हुआ जा सकता है। मनुष्य परमात्मा बन सकता है! परन्तु 'खुद का' ज्ञान होने से, आत्मा को व्यक्त करने से, वह हो सकता है! आत्मा ही परमात्मा बन सकता है!
प्रश्नकर्ता : हमारे यहाँ एक संत आए थे वे 'ओहम् और सोहम्' बोल रहे थे, वह क्या है?
दादाश्री : ॐ और सोहम्, दो शब्द हैं। ओहम् नामका कोई शब्द नहीं है। अपना जो ॐ हैं न, वह उच्चतम मंत्र है। उसे बोलने से बहुत लाभ होता है ऐसा है और सोहम् का अर्थ क्या है कि 'वह मैं हूँ, जो भीतर है वह मैं हूँ।' ये दोनों मंत्र लाभदायक हैं।
ज़िन्दगी क्या है? प्रश्नकर्ता : आपके हिसाब से ज़िन्दगी क्या है?
दादाश्री : मेरे हिसाब से ज़िन्दगी जेल है, जेल! ऐसी चार प्रकार की जेलें हैं। देव-देवी नज़रकैद में हैं। ये मनुष्य सादी कैद में हैं। फिर इन मनुष्यों के अलावा दूसरे जो धरती पर दिखते हैं, जिन्हें तिर्यंच कहते हैं, वे सभी सख़त मज़दूरी की कैद में हैं और चौथा आजीवन कैद। वह नर्कगति के लोगों को है। तुझे इस जेल में अच्छा लगता है क्या?
प्रश्नकर्ता : अच्छा तो नहीं लगता, परन्तु अच्छा लगाना पड़ता है।
दादाश्री : हाँ, क्या करे? कहाँ जाए फिर? आ फँसे फिर कहाँ जाए वह? और तुझे अकेले को नहीं, साधु, आचार्य, महाराज सभी फँसे हुए हैं। वे अब कहाँ जाएँ? दरिया में डूबें, तो वहाँ भी पुलिसवाले पकड़ते हैं! क्यों आत्महत्या कर रहे हो?' ऐसा कहते हैं। तो आत्महत्या भी नहीं करने देते! यह सरकार इतनी अच्छी आई है कि आत्महत्या करनी हो,