Book Title: Aptavani Shreni 05
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 212
________________ आप्तवाणी-५ हमारे ऐसे रास्ते होते हैं । यह अक्रम विज्ञान इतना अधिक फलदायी है, एक मिनिट भी टाइम कैसे खोएँ? फिर ऐसा जोग किसी जन्म में नहीं आएगा। इसलिए इस जन्म में पूरा कर लेना है। १८१ प्रश्नकर्ता : दादा, यह पूरा कर लेने को कहा, वह किस तरह? दादाश्री : हम जब तक हैं, तब तक और कहीं टाइम नहीं बिगाड़ना चाहिए। हम बड़ौदा जाएँ और जिसके वैसे अनुकूल संयोग हों और पैसे हों, उन्हें वहाँ पर आना चाहिए । जितना हो सके उतना हमारा अधिक समय लेना। सिर्फ हमारे सत्संग में आकर बैठे रहना । और कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है! प्रश्नकर्ता : आपका परिचय देंगे? दादाश्री : 'मुझे' आप पहचान नहीं सकोगे । 'ये' जो आप देखते हो, वे तो अंबालाल पटेल हैं - भादरण गाँव के ! मुझे तो आप पहचान ही नहीं सकोगे न! क्योंकि 'मैं' इस तरह दिखूं, ऐसा हूँ ही नहीं ! यह जो वाणी बोली जा रही है, वह 'ओरिजिनल टेपरिकॉर्डर' है। आपका भी ‘ओरिजिनल टेपरिकॉर्डर' है, परन्तु आपको अहंकार है इसलिए 'मैं बोला', 'मैं बोला ' करते रहते हो ! हमें अहंकार नहीं है इसलिए ऐसा कुछ झंझट ही नहीं रहता । ये दिखते हैं वे भादरण के पटेल हैं और भीतर ‘दादा भगवान' बैठे हैं! यहाँ व्यक्त हो चुके हैं और आपमें अव्यक्त रूप से रहे हुए हैं। उन व्यक्त के साथ विनयपूर्वक बैठने से आपके भी व्यक्त होते जाएँगे। यह परम विनय का मार्ग है। यहाँ पैसों की ज़रूरत नहीं है । यहाँ सेवा की भी ज़रूरत नहीं है । यहाँ किसी चीज़ की भी ज़रूरत नहीं है। यहाँ द्रव्यपूजा नहीं होती, यह तो मोक्ष का मार्ग है। हमारे पास अविनय करो उसमें हमें हर्ज नहीं है, परन्तु आप अपने खुद पर अंतराय डाल रहे हो, आप हमें गालियाँ देते हो, वह आप खुद अपने को ही नुकसान कर रहे हो। यहाँ तो बहुत विनय चाहिए, परम विनय

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