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आप्तवाणी-५
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हूँ। मैं किसीका रक्षक नहीं हूँ।'
प्रश्नकर्ता : कुछ महापुरुषों ने कुछ मृत मनुष्यों में जीव डालकर चिता पर से खड़ा किया है, तो वह कौन-सी शक्ति है?
दादाश्री : ऐसा है न कि जीव डालकर खड़ा कर सके तो खुद मरेंगे ही नहीं न कभी! इस दुनिया में जीव डालनेवाला कोई पैदा ही नहीं हुआ। जो डालता है, वह नैमित्तिक है। ऐसा मेरे निमित्त से बहुत होता है। मैं कबूल करता हूँ कि मैं निमित्त हूँ। इसमें गलत मत मान लेना।
प्रश्नकर्ता : तो उसका अर्थ यह कि हक़ीक़त में वह मरा ही नहीं था ऐसा न?
दादाश्री : हाँ, सही है। वह मरा ही नहीं था। भय के कारण या ऐसे किसी कारण से यहाँ इतने भाग (ब्रह्मरंध्र) में कुछ हो जाता है, उसे वे लोग उतार सकते हैं।
प्रश्नकर्ता : जिन महात्माओं को निर्विकल्प समाधि होती है, तो वह आत्मा किस तरह देह में से बाहर जाता है?
दादाश्री: निर्विकल्प समाधि हो, उसका आत्मा इस देह में से मुक्त होता है, तब पूरे ब्रह्मांड में प्रकाश देकर जाता है। पूरे ब्रह्मांड को प्रकाशित करता है।
प्रश्नकर्ता : निर्विकल्प समाधि में पूरे ब्रह्मांड को प्रकाशित करके यह आत्मा गया, उसके चिह्न क्या हैं? उसका पता किस तरह चलता है?
दादाश्री : वह तो 'ज्ञानी पुरुष' पहचानते हैं या उसे महावीर पहचानते हैं।
प्रश्नकर्ता : 'ज्ञानी पुरुष' उसे किस तरह पहचानते हैं?
दादाश्री : 'ज्ञानी' तो तुरन्त ही, उसे देखते ही पहचान लेते हैं। उनके लिए तो वह स्वाभाविक है। हर कोई अपने-अपने स्वभाव को तुरन्त ही पहचान लेता है।