________________
आप्तवाणी-५
प्रश्नकर्ता: सही गाड़ी आई या गलत आई है, उसका पता किस तरह चलेगा?
१७८
दादाश्री : ऐसी शंका हो तो घर चले जाना। भगवान के वहाँ शंकावाले का तो काम ही नहीं है । इन गाड़ियों में सही-गलत नहीं करना होता है। समझने में सही-गलत करना होता है ।
प्रश्नकर्ता : भक्त और ज्ञानी, इन दोनों में फर्क है क्या?
I
दादाश्री : हाँ, सेव्य और सेवक जितना फर्क है ! भक्त सेवक है, वे बाद में सेव्य बनेंगे । ज्ञानी सेव्य हैं और भक्त सेवक हैं । सेव्य का सेवन करने से सेव्य बनते जाते हैं और रूप तो एक ही है, परन्तु अवस्थाओं के कारण बदलता है । जिन्होंने आत्मा प्राप्त कर लिया है, वे सभी ज्ञानी कहलाते हैं, परन्तु यदि सभी ज्ञानी कहलाने लगें तो क्या जवाब दोगे? यानी कि ज्ञानी श्रुतज्ञान सहित होने चाहिए। वीतराग भगवान का पूरा श्रुतज्ञान, उसी प्रकार वेदांत मार्ग का सभी श्रुतज्ञान होता है, तब उन्हें ज्ञानी कह सकते हैं। ऐसे ही ज्ञानी नहीं कहे जा सकते !
प्रश्नकर्ता : आशीर्वाद माँगें और दें, तो वे फलित होते हैं क्या?
दादाश्री : हाँ, परन्तु हमेशा सभी फलित नहीं होते, उसमें अपना वचनबल होना चाहिए, तब वह फलित होगा । नहीं तो फिर भी आपको आशीर्वाद तो देने चाहिए । बाकी किसीके देने से दिया नहीं जाता, वह तो उसका काम होनेवाला होता है, तब यह निमित्त बन जाता है । जिसका यशनामकर्म होता है वे निमित्त बन जाते हैं, फिर आशीर्वाद की दुकानें खोलते हैं। खुद में तो संडास जाने की भी शक्ति नहीं है, तो आशीर्वाद क्या देता! यह तो यशनामकर्म होता है, बड़े लोगों का यशनाम कर्म अधि अच्छा होता है।
जगत् कल्याण की भावना बहुत समय से, बहुत जन्मों से करते आए हों तो यशनाम कर्म बहुत बड़ा होता है । यशनाम कर्म तो जगत्कल्याण की भावना में से उत्पन्न होता है । जगत् के लोगों को सुख हो, जितने