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आप्तवाणी-५
नहीं तो 'इन्वेन्शन' किस तरह होगा?
आत्मा किसीको मिल सके, ऐसा है ही नहीं, सिर्फ तीर्थंकर भगवंतों को मिला है ! जगत् ने जिसे आत्मा माना है, आत्मा वैसा नहीं है। आत्मा संबंधी जो-जो कल्पनाएँ की हुई हैं, वे सभी कल्पित हैं। परन्तु उनकी भाषा में जो है, वह उनके लिए सही है। कुदरत ने उनके लिए हिसाब प्रबंधित किया है, उस अनुसार भोगते हैं। शास्त्रों में आत्मा का शब्दज्ञान दिया हुआ है, वह संज्ञा ज्ञान है। यदि संज्ञा ज्ञानी के पास से समझ जाए तो आत्मा की प्रतीति होती है और अंत में केवळज्ञान होता है।
मोक्ष के अधिकारी प्रश्नकर्ता : मोक्ष प्राप्ति प्रत्येक मनुष्य का हक़ है?
दादाश्री : मोक्ष प्राप्ति का हर एक मनुष्य का नहीं, हर एक जीव का हक़ है, क्योंकि हर एक जीव सुख ढूँढ़ रहा है। वह सुख ‘इसमें मिलेगा, इसमें मिलेगा' ऐसी आशा में ही अनंत जन्मों से भटक रहा है। वह शाश्वत सुख ढूँढ रहा है। शाश्वत सुख, वही मोक्ष। ये 'टेम्परेरी' सुख, सुख ही नहीं कहलाते। यह तो सब भ्रांति है, आरोपित भाव है। यदि श्रीखंड में सुख होता और आप श्रीखंड खाकर आए हों, तो आप उसे वापिस खाओगे? आपके लिए वह दुःखदायी हो पड़ेगा न? इसलिए उसमें सुख नहीं है। जैसा आरोपण करो वैसा सुख मिलता है। इसलिए मोक्षप्राप्ति का हर एक जीव को अधिकार है।
प्रश्नकर्ता : इस मार्ग पर जाने के लिए ज्ञानी के चरणों में बैठना चाहिए, वह रास्ता है?
दादाश्री : ज्ञानी स्वयं मुक्त हैं, इसलिए आपको भी मुक्त कर सकते हैं। संसार की किसी चीज़ में वे नहीं रहते, इसलिए आपको भी सर्व प्रकार से मुक्त कर सकते हैं। जिन-जिन को भजते हैं, उस रूप होते हैं।
जहाँ अहंकार नहीं होता है, वहाँ पर आप बैठे रहो तो आपका अहंकार चला जाता है। अभी आपके मन में ऐसा है कि लाओ, ‘दादा के