Book Title: Aptavani Shreni 05
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 185
________________ १५४ आप्तवाणी-५ कर्म उड़ जाएगा न? दादाश्री : ज्ञाता-दृष्टा रहें, तब सारे ही कर्म उड़ जाएँगे। सारा चारित्रमोह उड़ जाएगा। सिर्फ शुद्ध उपयोग ही रहेगा। 'मैं शुद्धात्मा हूँ' उसका उपयोग रहना चाहिए। यह भी शुद्धात्मा है, वह भी शुद्धात्मा है गधे, कुत्ते, बिल्ली, सभी शुद्धात्मा हैं । जेब काटनेवाला भी शुद्धात्मा है। I इस दुषमकाल के जीवों की समझ में मोह और मूर्छा भरे हुए हैं, इसलिए कृपालुदेव ने इस काल के जीवों को हत्पुण्यशाली कहा है! ये लोग पूरे दिन क्रोध-मान- माया-लोभ, राग- - द्वेष करते रहते हैं ! बाप-दादा करते थे, वह रूढ़ी चली आ रही है, उस अनुसार धर्म करते हैं । परन्तु वह समझदारीपूर्वक नहीं होता। हर एक को अपने-अपने धर्म के पुद्गल का आवरण होता है। जैन को जैन पुद्गल और वैष्णव को वैष्णव पुद्गल मोक्ष में नहीं जाने देता। उस पुद्गल की निर्जरा होगी, तब कल्याण होगा। मोक्ष में जैन पुद्गल भी काम में नहीं आएगा और दूसरे पुद्गल भी काम में नहीं आएँगे। प्रत्येक पुद्गल का निकाल करना पड़ेगा । प्रश्नकर्ता : मोक्ष के द्वार में तो पुद्गल को दाख़िल ही कहाँ होना है? वहाँ तो आत्मा को ही दाख़िल होना है । दादाश्री : शुद्धात्मा पद प्राप्त होने के बाद मोक्ष में दाख़िल हुआ जा सकेगा, ऐसा है। बाकी सबमें से राग-द्वेष खत्म हो जाएँ, तब जो बचा वह चारित्रमोह कहलाता है, उसकी निर्जरा हो जाए कि मोक्ष हो जाएगा ! प्रश्नकर्ता : कर्म की निर्जरा कैसी होती है? दादाश्री : आप शुद्धात्मा में हों, तो सब कर्म की निर्जरा ही है क्या निर्जरा होती है, उससे आपको क्या काम है? रोज़ शौचालय में आप देखते रहते हो कि आज पीला हुआ या काला हुआ? यह भी एक निर्जरा ही है, देह की एक प्रकार की निर्जरा है। प्रश्नकर्ता : वह ठीक है, परन्तु निर्जरा पूरी कब होती है ? दादाश्री : पूरी करके आपको क्या करना है? -

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