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आप्तवाणी-५
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वैसा मानते हो! आप सामनेवाले को गधा कहो उसके साथ ही भगवान को भी गधा कह देते हो। इसलिए सामनेवाले को गधा कहने से पहले सोचना। टकराव होना ही नहीं चाहिए। उसका हल लाना चाहिए। हल लाए बगैर बैठे रहना 'वेस्ट ऑफ टाइम एन्ड एनर्जी' है।
स्थितप्रज्ञ कब कहलाते हैं? एक पंडित ने मुझसे पछा, 'स्थितप्रज्ञ अर्थात क्या?' अब मैं कोई पंडित नहीं हूँ। मैं ज्ञानी हूँ। उस पंडित को बिना पारे के गर्मी चढ़ी हुई थी। मैंने उन्हें समझाया कि आप जब बिना पारे के हो जाओगे, तब स्थितप्रज्ञ दशा हो जाएगी! इसलिए यह पारा उतारो। पंडित, वह तो विशेषण है। कई लोगों का होता है। पंडित तो बहुत होते हैं, एक दिन बगैर विशेषण के हो जाओ। मैं बगैर विशेषण का हो गया हूँ, इसलिए लोग मुझे ज्ञानी कहते हैं, वर्ना मैं तो ज्ञानी भी नहीं हूँ। मैं तो बिना विशेषण का 'निर्विशेष पुरुष' हूँ।
विचारों द्वारा कर्म कट सकते हैं? प्रश्नकर्ता : कहा जाता है कि पूरा मोहनीय कर्म विचारों द्वारा उड़ाया जा सकता है!
दादाश्री : हाँ, परन्तु वे विचार 'ज्ञानी पुरुष' के पास से लिए हुए होने चाहिए, खुद के विचारों से नहीं।
विचार दो प्रकार के : एक स्वच्छंदी विचार और दूसरे 'ज्ञानी पुरुष' के पास से लिए हुए विचार। 'ज्ञानी पुरुष' को हर बार बताना कि ऐसे विचार आते हैं, तब वे कहेंगे कि यह करेक्ट है, तो आगे चलने देना, वर्ना स्वच्छंदी विचार हों, तो जाने कहाँ पहुँच जाएगा। विचार से सबकुछ खत्म हो सकता है। मेरा सबकुछ विचारों द्वारा ही खत्म हो गया है, इस जगत् में कोई ऐसी वस्तु नहीं, कोई ऐसा परमाणु नहीं कि जिस पर मैंने विचार नहीं किया होगा!
कर्मों की निर्जरा-ज्ञानियों का तरीका! प्रश्नकर्ता : जो ज्ञानी हैं, वे मोहनीय कर्म के ज्ञाता-दृष्टा रहें तो वह