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आप्तवाणी-५
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जगह पर पहुँचेगा? लाख जन्म हो जाएँ, फिर भी कुछ होगा नहीं। अंतरदाह जलना बंद नहीं होगा। और 'ज्ञानी पुरुष' के पास अंतरदाह हमेशा के लिए मिट ही जाता है।
जितनी बुद्धि बढ़ती है, उतना दाह बढ़ता जाता है। बुद्धि संसारानुगामी है। संसार में हितकारी है। परन्तु मोक्ष में जाने में बाधा डालती है। मन तो सिर्फ सोचता ही रहता है। जहाँ डिसीज़न नहीं होता, वह मन। अन्डिसाइडेड विचार, वह मन और डिसाइडेड विचार, वह बुद्धि! यहाँ बैठे-बैठे खो जाए तो समझना कि चित्त भटकने गया है। 'ज्ञानी पुरुष' के पास बैठे, तब बुद्धि सम्यक् होती है। तब वह बुद्धि सच्ची। सम्यक् बुद्धि कैसी होती है? मत नहीं होता, गच्छ नहीं होता, जुदाई नहीं होती। दूसरा कोई झंझट नहीं होता, और गच्छ-मतवाली बुद्धि मिथ्याबुद्धि कहलाती है। 'यह हमारा और यह आपका' ऐसे जुदाई करवाती है!
__ आउटर बुद्धि-इनर बुद्धि 'आउटर' बुद्धि (बर्हिबुद्धि) 'मिकेनिकल' है और 'इनर' बुद्धि (आंतर-बुद्धि), वह स्वतंत्र बनानेवाली है। वह बुद्धि भी मिकेनिकल (भौतिक) है।
प्रश्नकर्ता : स्वतंत्र अर्थात्?
दादाश्री : स्वतंत्र अर्थात् इस वर्ल्ड में कोई हमारा ऊपरी (बॉस, वरिष्ठ मालिक) नहीं रहे। 'नो बॉस।' भगवान भी ऊपरी नहीं, ऐसा चाहिए! ये ऊपरीपन किस तरह पुसाएँ? एक भी ऊपरी रहे, तब तक परवशता कहलाती है! परवशता किस तरह पुसाए? वह जब चाहे झिड़के, उसके लिए क्या कहा जा सकता है? इसलिए ऊपरी नहीं चाहिए। सारे ऊपरी तेरी नासमझी से हैं। वही समझाने के लिए मैं आया हूँ। मेरा कोई ऊपरी नहीं रहा। इसलिए मैं ऐसा कहना चाहता हूँ कि आपका भी कोई ऊपरी नहीं है, इसलिए बात को समझो!
प्रश्नकर्ता : ‘मिकेनिकल' बुद्धि से मनुष्य क्या प्राप्ति कर सकता