Book Title: Aptavani Shreni 05
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 192
________________ आप्तवाणी-५ १६१ मान्यता पर ही है। इसमें मनुष्य के अलावा अन्य जीव तो आश्रित ही हैं। देवी-देवता, जानवर सभी आश्रित ही हैं। सिर्फ मनुष्य ही निराश्रित है। प्रश्नकर्ता : ये मनुष्य निराश्रित हैं, वह किस प्रकार? ये देवी-देवता आश्रित हैं, वह किस प्रकार? दादाश्री : सिर्फ मनुष्य ही निराश्रित है। मनुष्य के अलावा दूसरा कोई जीव, देवी-देवता भी, 'मैं कर्ता हूँ' ऐसा भान नहीं रखते हैं। और जहाँ पर कर्ता बना, वहाँ भगवान का आश्रय छूट जाता है। भगवान क्या कहते हैं? 'भाई, तू कर लेता है तो तू अलग और मैं अलग!' फिर भगवान का और आपका क्या लेना-देना? आप फिर थक जाते हो, ऊब जाते हो इसलिए महावीर भगवान की मूर्ति या कृष्ण भगवान की मूर्ति के सामने बैठकर सिर फोड़ते हो। फिर वहाँ पर कोई बाप भी आश्रित के रूप में स्वीकार नहीं करेगा। कर्त्तापन की रोंग बिलीफ़ टूटेगी तभी आप आश्रित हो, सर्वस्व हो! परन्तु रोंग बिलीफ़ छूटती नहीं न? प्रश्नकर्ता : 'दादा' छुड़वाते हैं न? दादाश्री : वह तो छूटना हो उन्हें छुड़वाते हैं। जिसे छूटना ही नहीं हो उसे किस तरह छुड़वाए? क्योंकि भगवान के घर पर भी नियम है। भगवान का क्या नियम है? जिसे छूटना हो उसे भगवान कभी भी बाँधते नहीं हैं और जिसे बँधना हो उसे कभी भी छुड़वाते नहीं हैं! अब जगत् में लोगों को पूछने जाएँ कि आपको बँधना है या छूटना है? प्रश्नकर्ता : हमें किस तरह से समझ में आएगा कि बँधना है या छूटना है? दादाश्री : बँधने के कारणों का सेवन करते हैं या छूटने के कारण का सेवन करते हैं, उस पर से समझ में आएगा। छूटने के कारणों का सेवन करे, उसे छूटने के संयोग मिल जाते हैं। वहाँ उसे भगवान हेल्प ही करते रहते हैं और जो बँधने के कारणों का सेवन करता है, उसे भी भगवान

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