________________
१५०
आप्तवाणी-५
प्रश्नकर्ता : भूख को संतुष्ट करने के लिए।
दादाश्री : तुझे भूख लगती है, उस घड़ी अंदर पेट में लगती है या बुझती है?
प्रश्नकर्ता : भूख तो लगती ही है न? दादाश्री : बुझती नहीं है? प्रश्नकर्ता : नहीं, खाने के बाद बुझ जाती है।
दादाश्री : हाँ, इसलिए भूख, वह अग्नि ही कहलाती है न? पेट में अग्नि लगती है तब क्या खाता है? इस गाड़ी की खुराक तो पेट्रोल है और हमारा ईंधन घी और तेल का है। तुझे सिर्फ भूख ही लगती है या प्यास भी लगती है?
प्रश्नकर्ता : प्यास भी लगती है न!
दादाश्री : अर्थात् प्यास भी अंदर जलती है ऐसा न? तू उसमें पानी डाले तब वह बुझती है न?
प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : तुझे थकान भी होती है क्या? प्रश्नकर्ता : हाँ, थकान होती है।
दादाश्री : थकान होती है, तब घंटाभर आराम करता है। नींद लग जाती है क्या?
प्रश्नकर्ता : हाँ, लग जाती है। दादाश्री : अर्थात् यह सब लगता है।
भगवान ने क्या कहा था कि यह मनुष्य का अवतार जलते हुए को बुझाने के लिए है। तब हम कहते हैं, 'साहब जलता हुआ बुझा दिया। अब और मुझे क्या करना है?' तब भगवान कहते हैं कि, 'आप तो मेरा नाम