Book Title: Proceedings and papers of National Seminar on Jainology
Author(s): Yugalkishor Mishra
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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श्रीगोरखप्रसाद
उपनिदेशक (प्रशासन), मानव संसाधन विकास विभाग, बिहार का
धन्यवाद-अभिभाषण
आदरणीय अध्यक्ष महोदय, पद्मश्री श्री के. एन. प्रसाद साहब, डा. बी. के. लाल साहब, इस संस्थान के निदेशक मिश्रजी तथा उपस्थित सज्जनो एवं मित्रो !
प्राकृत जैनशास्त्र और अहिंसा शोध-संस्थान, वैशाली के तत्वावधान में आयोजित इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में, जिसमें देश के चोटी के विद्वान् भाग ले रहे हैं, मेरे जैसे एक सामान्य सरकारी सेवक (सिविल सर्वेण्ट) की क्या भूमिका हो सकती है, यह मुझे स्वयं स्पष्ट नहीं हो पा रहा है। फिर भी इस संस्थान के निदेशक डा. मिश्रजी ने मुझे धन्यवाद ज्ञापन का काम सौंपा है, मैं अपना कर्तव्य-पालन के लिए आपके समक्ष खड़ा हँ। आज का संसार धार्मिक उन्माद और कट्टरपन के रास्ते पर तेजी से अग्रसर हो रहा है। चाहे अपना देश हो, चाहे एशिया के अन्य देश या यूरोप, सभी जगह इस धर्मिक उन्माद और कट्टरपन का बोलबाला है । धर्म के नाम पर दुनिया में जैसा रक्तपात और नरसंहार हुआ है, उसकी याद करके ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। ऐसी परिस्थिति में हमारा ध्यान उन चिन्तकों एवं महापुरुषों की ओर जाता है, जिन्होंने मानव को करुणा, दया, सहिष्णुता, सत्य तथा अहिंसा का सन्देश दिया है। इस क्रम में हमारा ध्यान भगवान् बुद्ध, भगवान् महावीर, गाँधी, हेनरी डेविड थौरो, इमरसन तथा टॉल्सटॉय जैसे महापुरुषों की ओर जाता है।
आज इस संस्थान के तत्त्वावधान में 'जैनधर्म की प्रासंगिकता' पर इस राष्ट्रीय स्तर की संगोष्ठी का जो आयोजन किया गया है, वह हमारी उक्त अभीष्ट की सिद्धि की दिशा में किया गया एक महनीय सारस्वत प्रयास है। यह गर्व की बात है कि इस संगोष्ठी में देश के जाने-माने विद्वान् भाग ले रहे हैं। इस संगोष्ठी का उद्घाटन पद्मश्री श्री के. एन. प्रसाद साहब ने किया; डा. बी. के. लाल साहब ने 'जैनधर्म की प्रासंगिकता' पर अपना विद्वत्तापूर्ण लेख आपके सामने पढ़ा। डा. रामजी सिंहजी ने अपना सारगर्भ अध्यक्षीय भाषण किया। मैं सबसे पहले अपनी ओर से तथा इस संस्थान की ओर से डा. रामजी सिंह के प्रति आभार प्रकट करना चाहता हूँ, जिन्होंने अपना बहुमूल्य समय
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