Book Title: Tiloy Pannatti
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Jaina Siddhanta Bhavana

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Page 15
________________ १२ तिलोय पण्णत्ती बेरिहिं दंडा दंडसमा जुगधणूणि मुसलं वा । तस्स तहा णाली दादंडसहस्सर्य कोसं ॥११५॥ चकोसेहिं ओयण तं चिय | वित्थारगतसमवट्ट । ततियमेतं घणफलमाणेज्जं करणकुसलेहिं ॥११६॥ समव वासवग्गे दहगुणिदे करणिपरिधयो होदि । वित्थारतुरिमभागे परिधिहदे तस्स खेप्तफलं ॥११७॥ उणवीसजेोयणेसुं चडवीसेहिं तहावहरिदेसु । तिविहवियप्पे पल्ले घणखेत्तफला हु पत्तेका ॥ ११८ ॥ उत्तमभागखिदीप उप्पराणविजुगलरोमकेाडीऊ । एक्कादिसत्तदिवसा वहिम्मि च्छेत्तूणं संगहियं ॥ ११६ ॥ वट्टहिं तेहिं रोमम्मोहिं निरंतरं पढमं । प्रच्चतं णविदू भरियव्वं जाव भूमिसमं ॥ १२० ॥ दंडपमाणंगुलर उस्सेहंगुल जवं च जूवं च । लिक्खं तह काढूणं वालग्गं कम्मभूमीय ॥ १२१ ॥ * प्रवरंमज्झिमउत्तमभोगाखिदीणं च वालअग्गाइ । एक्केकमट्टगणहदरोमा ववहारपल्लस्स ॥१२२॥ 50 । ६६ । ५०० | ८ | ८ | ८ | ८ | ८ । ८ । ८ । ८ । 50 | ६ | ५०० | ८ | ८ | ८ | ८|८|८|८। ८ । 50 । ६६ । ५०० | ८ | ८ | ८ | ८ | ८| ८ | ८ | ८ | पल्ल रोमस्स संता: सुराणाणिं दो गवेक्क दो एक्का | पणणवचउक्कसत्ता सगसत्ता एक्कतियसुण्णा ॥ १२३॥ दो असुरागतिअणहतियच्छदारिणपणचउतिरिण य । पक्कचक्काणिं ते का कमेण पल्लुस्स ॥ १२४ ॥ ४१३४५२६३०३०८२०३१७७७४६५ १२१६२०००००००००००००००००० | एक्क्कं रामग्गं वस्ससदे पेलिदम्हि सो पल्लो । रिश्तो हादि स काला उद्धाराणमित्तववहारो ॥ १२५ ॥ IS वित्थारंगतं ; 2 Sणं वि; 3S वालगूनं ( 3 ) ; 4 AB अवर; 6 अंतेणं (?); 7 B श्रंक ; 5. पल्लं (3) ;

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