Book Title: Tiloy Pannatti
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Jaina Siddhanta Bhavana

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Page 78
________________ तिलोयपएणत्तो पत्तक्कं रुक्खाणं अवगाढकोसमेकमुहिह। जोयणखंदुच्छेहो साहादीहत्तणं च चत्तारी ॥३४॥ को १ । जो ४। - २५० विविहवररयणसाहा विचित्तकुसुमोवसोभिंदा सव्वे ।। वरमरगयवरपत्ता - दिव्वतरू ते विरायंति ॥३५॥ विविहंकुरुचेश्वइया विविहफला विविहरयणपरिणामा । छत्तादिछत्तजुदा घंटाजालादिरमणिजा ॥३६॥ श्रादिणिहणेण हीणा पुढविमया सव्वभवणचेत्तदुमा । । जीहप्पतिआयाणं होति णिमित्ताणि ते णियायामा ॥३७॥ चेत्ततरूणं मूले पत्तेक चउदिसासु पंचेव।। चेट्ठति जिणप्पडिमा पलियंकठिया सुरेहि महणिजा ॥३८॥' चउतोरणाभिरामा अट्टमहामंगलेहि सोहिल्ला।.. वररयणणिम्मिदेहिं माणत्थंभेहि अइरम्मा ॥३९॥ ।वेदीवण्णणा गदा। वेदीणं बहुमज्झे जोयणसयमुच्छिदा महाकूडा। वेत्तासणसंठाणा रयणमया होति सव्वट्ठा ॥४॥ ताणं मूले उवरिं समंतदो होंति दिव्ववेदीउ। पुबिल्लवेदियाणं सारिच्छं वगणणं सव्वं ॥४१॥ वेदीणभंतरए वणसंढा वरविचित्ततरुणियरा । पुक्खरिणीहि - समम्मा तप्परदो दिव्ववेदीउ ॥४२॥ ।कूडा गदा। कूडोवरि पत्तक्क जिणवरभवणं हवेदि एक्क्केक। वररयणकंचणमयं विचित्तविण्णाणरमणिज्ज ॥४३॥ चउगोउरा तिसाला वीहिंपरिमाणथंभणवथूहा । णवधयचेत्तखिदीउ सब्वेसुं जिणणिकेदेसं ॥४४॥

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