Book Title: Tiloy Pannatti
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Jaina Siddhanta Bhavana
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तिलोयपण्णत्तो
धरणाणंदे अधियं वेणुम्मि हुवेदि पुवकोडि प्ति। . जंदेवीण आउसंखा अधिरित्तं वेणुदारिस्स' ॥१७१॥
पु को ३ । पत्तक्कमाउसंखा देवीणं तिगिण वरसकोडीओ। सेसम्मि दक्खिणिंदे अधिरित्तं उत्तरिंदम्मि ॥१७२॥
व को ३ । पडिइंदाणि चउगणं आऊ देवीण होदि पत्तेक। णियणियइंदपवगिणददेवीआउस्स सारिच्छा ॥१७३॥ जेत्तियमेत्ता आऊ सरीररक्खाण होइ देवीणं । तस्स पमाणणिरूवणउवएसो णत्थि कालवसा ॥१७४।। असुरादिदसकुलेसं सव्वणिरिट्ठा णा होदि देवाणं।। दसवाससहस्साणिं जहण्णआउस्स परिमाणं ॥१७५॥
। आउपरिमाणं सम्मत्ता। असुराण पंचवीसं सेससुराणं हुवंति दस दंडा। एस सहाउच्छेहो विकिरियंगेसु बहुभेया ॥१७॥
२५ । १० ।
। उच्छेहो गदो! णियणियभवणठिदाणं उक्कस्से भवणवासिदेवाणं । उड्डण होदि णाणं कंचणगिरिसिहरपरियंतं ॥१७७॥ तट्ठाणादोदो थोवत्थोवं पयट्टदे ओही। तिरियसरूवेणं पुणो वहुत्तर खेतेसु अक्खलिदं ॥१७८।। पणुवीसजोयणणं होदि जहणणेण ओहिपरिमाणं । भावणवासिसुराणं एक्कदिणभंतरे काले ॥१७९॥ असुराणमसंखेजाजोयणकोडीउ ओहिपरिमाणं । खेत्ते कालम्मि पुणो होंति असंखेजवासाणिं ॥१८॥ संखातीदसहस्सा उक्कस्से जोयणाणि सेसाणं।
असुराणां कालादो संखेजगुणेण हीणा य ॥१८॥ । वेणुधारिस्स (?); 2 सम्मत्तं (?); 3 तट्ठाणादोद्धो (?); 4 s बहुतर।

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