Book Title: Shabdarnava Chandrika
Author(s): Shreelal Jain Vyakaranshastri
Publisher: Pannalal Jain Granthamala

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Page 39
________________ १।२।१२१ मिडा वाक्यं मुमचः अकारादिक्रमणिका। मनस्युरस्युपाजेऽन्वाजेमध्येपदे मावधेः ५।१।१६५ . निषचने २२२२१७० माशब्दमित्यादिभ्यः ३।३।२०० मनसश्चाज्ञायिनि ४३.१५४ मासाद् वयसि यः ३४१०६ मनोः षुक् चाज्यो ३।१।१५८ २२४९५ मना साप च ३।१८ | मिस्नेरक प्राक्टेः ४।१।१७६ मनोरैश्च ३१४५ | मिङत्रिशोऽस्मदयुमदन्याः १।२।१७९ मनुर्नमोऽगिरो वति ११२११५ मनोरुश्चक्षुश्चेतोरहोरजसः खं । ४ारा६८ मिडैकार्थे वाः १।४६५ मम् १२८९ मिङोऽपेक्षस्यांगेन ५३।१३२ ममोझयो मतोर्वोऽयवादिभ्यः ५३४६ मिमीञोरखाच ४।३।५० मयट ३।३।६४ मितनखपरिमाणे पचः વારા मयट प्रकृते ४।२।२५ मितंद्रादयः २।२।१७१ मयड़ वाऽभक्ष्याच्छादने ३।३।१३० मिथ्याकृतोऽभ्यासे श८१ मयूरव्यंसकादयश्च १३.६३ मिदेरेप ५२८९ मयों वोऽच्युञः ५।४।१७ | मिपथस्थतसोंऽतंततां २४८४ मरुतेऽस्तोऽचः ।२।१६४ मिन्वस्पससिपथस्थतिपतस्झीड मलादीमसश्च ४१/७२ वहिमाहिथासाध्वंतातांझ ४६६ मस्य ५।१।११५ मिमतफांटाहतेणश्च ३६१३१७८ महत्सर्वाटण ३।४।१३ मुटुंलिडोश्च १।२।६९ महाकुलाद खञ् ३।१।१९४ ४॥४॥२३३ महाराजप्रोष्ठपदाढण् ३।२।३५ मूल्यैः क्रीतं ३४।४५ महाराजादेशकालाचित्ताढण् ३।३।८१ / मूलादनमः ३.१७४ महेंद्राद् घाऽण ३२।३१ / मृगक्षीरादिषु ४.३।१९४ मायाकोशे २।३।१४ मृगयेच्छाटाट्याः २३१०४ माङः स्वार्थ २।४६ मृगोत्तरपूर्वाध सक्नः ४ाश१२४ माङि लुङ् २।३।२६६ मृजेरै ઉપરા माणवयरकात खञ् ३।४।१० मृङमृद्गुधकुष्वरसः वित्व १।१०९५ मात्र ३।४।२०४ मृदस्तिका ४।२।५३ मातापितरौ ४।३।१८६ मृदंतनुम्सुपि ५।४।११३ मातुलाचार्योपाध्यायादानुग च ३॥१४६ मृदो ध्वर्थे णिज बहुलं २।१२८ मातृपितुः स्वस् ५।४।६९ मृष: १।२।२४ माथधुपदव्याकंदं धावन् ३।३।११९ मृषः स्वार्थ २।१।१०८ मानं २।२।५१ मानसंवत्सरस्याशाणकुलिजस्याखौ ५।२।२२ मेधारथाद् वेरः ४११६२ मानां णशवमथाथुसशुणशतुसुसः २४/७० मर्नि: शा७७ २।३।४० मोः ५।२।११३ माने वयः ३।३३१४३ मो नः ५।३।१११ मायामयामेधासक्तपोऽसो विन् ४।१।७४ मो वा ५।१।१६४ मारणतोषणनिशाने शश्च ४।४।६३ मौदादिभ्योऽण् ३१३१८६ मालात क्षेप ४११२२ ११२।२४ मालेषीकेष्टकस्यांतस्य च भारितूल- मंथौदनसक्तुविदुषत्रभारहारवीवधचिते ४।३।२३० गाहे ४।३।२२३ ३४६७/ मेघौ कः माने

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