________________
Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
३४]
[ मोक्षमार्गप्रकाशक
जानता है, किसी को किंचित जानता है- इत्यादिरूप से निर्मल जानना नहीं हो सकता।
इस प्रकार यह मतिज्ञान पराधीनता सहित इन्द्रिय – मन द्वारसे प्रवर्तता है। उन इन्द्रियों द्वारा तो जितने क्षेत्र का विषय हो उतने क्षेत्र में जो वर्तमान स्थूल अपने जानने योग्य पुद्गल स्कन्ध हों उन्हीं को जानता है। उसमें भी अलग-अलग इन्द्रियों द्वारा अलगअलग काल में किसी स्कन्धके स्पर्शादिक का जानना होता है। तथा मन द्वारा अपने जानने योग्य किंचित् मात्र त्रिकाल संबंधी दूर क्षेत्रवर्ती अथवा समीप क्षेत्रवर्ती रूपी-अरूपी द्रव्यों और पर्यायों को अत्यन्त अस्पष्टरूप से जानता है। सो भी इन्द्रियों द्वारा जिसका ज्ञान हुआ हो अथवा जिसका अनुमानादिक किया हो उस ही को जान सकता है। तथा कदाचित् अपनी कल्पना ही से असत् को जानता है। जैसे स्वप्न में अथवा जागते हुए भी जो कदाचित् कहीं नहीं पाये जाते ऐसे आकारादिक का चिंतवन करता है और जैसे नहीं हैं वैसे मानता है। इस प्रकार मन द्वारा जानना होता है। सो यह इन्द्रियों व मन द्वारा जो ज्ञान होता है उसका नाम मतिज्ञान है।
यहाँ पथ्वी, जल, अग्नि. पवन, वनस्पतिरूप एकेन्द्रियोंके स्पर्श ही का ज्ञान है; लट, शंख आदि दो इन्द्रिय जीवोंको स्पर्श. रस का ज्ञान है; कीडी. मकोडा आदि तीन इन्द्रिय जीवोंको स्पर्श, रस, गंध का ज्ञान है; भ्रमर ,मक्षिका, पतंगादिक चौ इन्द्रिय जीवोंको स्पर्श, रस, गंध, वर्ण का ज्ञान है; मच्छ, गाय, कबूतर इत्यादिक तिर्यंच और मनुष्य, देव, नारकी यह पंचेन्द्रिय हैं - इन्हें स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, शब्दों का ज्ञान है। तिर्यंचों में कई संज्ञी हैं - कई असंज्ञी हैं। वहाँ संज्ञियोंके मन जनित ज्ञान है, असंज्ञियोंके नहीं है। तथा मनुष्य , देव, नारकी संज्ञी ही हैं, उन सबके मनजनित ज्ञान पाया जाता है।
इस प्रकार मतिज्ञान की प्रवृत्ति जानना।
श्रृतज्ञान की पराधीन प्रवृत्ति
अब, मतिज्ञान द्वारा जिस अर्थ को जाना हो उसके संबंध से अन्य अर्थ को जिसके द्वारा जाना जाये सो श्रुतज्ञान है। वह दो प्रकार का है – १. अक्षरात्मक २. अनक्षरात्मक। जैसे 'घट', यह दो अक्षर सुने या देखे वह तो मतिज्ञान हुआ; उनके संबंध से घट-पदार्थ का जानना हुआ सो श्रुतज्ञान है। इस प्रकार अन्य भी जानना। यह तो अक्षरात्मक श्रुतज्ञान है। तथा जैसे स्पर्श द्वारा शीत का जानना हुआ वह तो मतिज्ञान है; उसके संबन्ध से 'यह हितकारी नहीं है इसलिये भाग जाना' इत्यादिरूप ज्ञान हुआ सो श्रृतज्ञान है। इस प्रकार अन्य भी जानना। यह अनक्षरात्मक श्रुतज्ञान है।
Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com