Book Title: Moksh marg prakashak
Author(s): Todarmal Pandit
Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust

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Page 393
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates रहस्यपूर्ण चिट्ठी] [३४९ तथा तुमने लिखा – द्वितीयाके चन्द्रमाकी भाँति आत्माके प्रदेश थोड़ेसे खुले कहो ? उत्तर :- यह दृष्टान्त प्रदेशोंकी अपेक्षा नहीं है, यह दृष्टान्त गुणकी अपेक्षा है। जो सम्यक्त्व सम्बन्धी और अनुभव सम्बन्धी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्षादिकके प्रश्न तुमने लिखे थे, उनका उत्तर अपनी बुद्धि अनुसार लिखा है; तुम भी जिनवाणी से तथा अपनी परिणतिसे मिलान कर लेना। __ अर भाईजी, विशेष कहाँ तक लिखें, जो बात जानते हैं वह लिखनेमें नहीं आती। मिलनेपर कुछ कहा भी जाये, परन्तु मिलना कर्माधीन है, इसलिये भला यह है कि चैतन्यस्वरूपके अनुभवका उद्यमी रहना। वर्तमानकालमें अध्यात्मतत्त्व तो आत्मख्याति-समयसारग्रन्थकी अमृतचन्द्र आचार्यकृत संस्कृतटीका - में है और आगमकी चर्चा गोम्मटसारमें है; तथा और अन्यग्रन्थोंमें है। जो जानते हैं वह सब लिखने में आवे नहीं, इसलिये तुम भी अध्यात्म तथा आगम ग्रन्थोंका अभ्यास रखना और स्वरूपानन्दमें मग्न रहना। और तुमने कोई विशेष ग्रन्थ जाने हो सो मुझको लिख भेजना। साधर्मियोंको तो परस्परचर्चा ही चाहिये। और मेरी तो इतनी बुद्धि है नहीं, परन्तु तुम सरीखे भाइयोंसे परस्पर विचार है सो बड़ी वार्ता है। जबतक मिलना नहीं हो तबतक पत्रतो अवश्य ही लिखा करोगे। मिती फागुन बदी ५, सं . १८११ Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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