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तीसरा अधिकार ]
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तथा तीनों वेदोंसे जब काम उत्पन्न होता है तब पुरूषवेदसे स्त्रीके साथ रमण करनेकी, स्त्रीवेदसे पुरूषके साथ रमण करनेकी और नपुंसकवेदसे दोनोंके साथ रमण करनेकी इच्छा होती है। उससे अति व्याकुल होता है, आताप उत्पन्न होता है, निर्लज्ज होता है, धन खर्च करता है, अपयशको नहीं गिनता, परम्परा दुःख हो व दण्ड आदि हो उसे नहीं गिनता। कामपीड़ासे पागल हो जाता है, मर जाता है। रसग्रन्थोंमें कामकी दस दशाएँ कहीं हैं। वहाँ पागल होना, मरण होना लिखा है । वैद्यकशास्त्रोंमें ज्वरके भेदोंमें कामज्वरको मरणका कारण लिखा है । प्रत्यक्ष ही कामसे मरण तक होते देखे जाते हैं। कामांधको कुछ विचार नहीं रहता । पिता पुत्री तथा मनुष्य तिर्यंचिनी इत्यादिसे रमण करने लग जाते हैं। ऐसी कामकी पीड़ा है सो महादुःखरूप है।
इस प्रकार कषायों और नोकषायोंसे अवस्थाएँ होती हैं।
यहाँ ऐसा विचार आता है कि यदि इन अवस्थाओं में न प्रवर्तें तो क्रोधादिक पीड़ा उत्पन्न करते हैं और इन अवस्थाओंमें प्रवर्तें तो मरणपर्यन्त कष्ट होते हैं। वहाँ मरण - पर्यन्त कष्ट तो स्वीकार करते हैं परन्तु क्रोधादिककी पीड़ा सहना स्वीकार नहीं करते। इससे यह निश्चित हुआ कि मरणादिकसे भी कषायोंकी पीड़ा अधिक है ।
तथा जब इसके कषायका उदय हो तब कषाय किये बिना रहा नहीं जाता । बाह्यकषायोंके कारण मिलें तो उनके आश्रय कषाय करता है, यदि न मिलें तो स्वयं कारण
बनाता है। जैसे व्यापारादि कषायोंका कारण न हो तो जुआ खेलना व क्रोधादिकके कारण अन्य अनेक खेल खेलना, दुष्ट कथा कहना - सुनना इत्यादि कारण बनाता है । तथा काम-क्रोधादि पीड़ा करें और शरीरमें उन रूप कार्य करनेकी शक्ति न हो तो औषधि बनाता है। और अन्य अनेक उपाय करता है। तथा कोई कारण बने ही नहीं तो अपने उपयोगमें कषायोंके कारणभूत पदार्थोंका चिंतवन करके स्वयं ही कषायोंरूप परिणमित होता है।
इस प्रकार यह जीव कषायभावोंसे पीड़ित हुआ महान दुःखी होता है।
तथा जिस प्रयोजनके लिये कषायभाव हुआ है उस प्रयोजनकी सिद्धि हो तो मेरा यह दुःख दूर हो और मुझे सुख हो • ऐसा विचारकर उस प्रयोजनकी सिद्धि होनेके अर्थ अनेक उपाय करना उसे उस दुःखके दूर होनेका उपाय मानता है।
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अब यहाँ कषायभावोंसे जो दुःख होता है वह तो सच्चा ही है, प्रत्यक्ष स्वयं ही दुःखी होता है, परन्तु यह जो उपाय करता है वे झूठे हैं। क्यों ? सो कहते हैं :
क्रोधमें तो अन्यका बुरा करना, मानमें औरोंको नीचा दिखाकर स्वयं ऊँचा होना, मायामें छलसे कार्यसिद्धि करना, लोभमें इष्टकी प्राप्ति करना, हास्यमें विकसित होनेका
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