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[ मोक्षमार्गप्रकाशक
फिर प्रश्न :- इनका श्रद्धान सम्यग्दर्शन कहा; सो दर्शन तो सामान्य अवलोकनमात्र और श्रद्धान प्रतीतिमात्र; इनके एकार्थपना किस प्रकार सम्भव है ?
उत्तर :- प्रकरणके वश धातुका अर्थ अन्यथा होता है। सो यहाँ प्रकरण मोक्षमार्गका है। उसमें 'दर्शन' शब्दका अर्थ सामान्य अवलोकनमात्र नहीं ग्रहण करना, क्योंकि चक्षु-अचक्षुदर्शनसे सामान्य अवलोकन तो सम्यग्दृष्टि - मिथ्यादृष्टिके समान होता है, कुछ इससे मोक्षमार्ग की प्रवृत्ति - अप्रवृत्ति नहीं होती । तथा श्रद्धान होता है सो सम्यग्दृष्टि ही के होता है, इससे मोक्षमार्गकी प्रवृत्ति होती है। इसलिये 'दर्शन' शब्दका अर्थ भी यहाँ श्रद्धानमात्र ही ग्रहण करना ।
फिर प्रश्न :- यहाँ विपरीताभिनिवेशरहित श्रद्धान करना कहा, सो प्रयोजन क्या ?
समाधान :- अभिनिवेश नाम अभिप्रायका है । सो जैसा तत्त्वार्थश्रद्धान का अभिप्राय है वैसा न हो, अन्यथा अभिप्राय हो, उसका नाम विपरीताभिनिवेश है । तत्त्वार्थश्रद्धान करने का अभिप्राय केवल उनका निश्चय करना मात्र ही नहीं है; वहाँ अभिप्राय ऐसा है कि जीवअजीव को पहिचान कर अपने को तथा परको जैसाका तैसा माने, तथा आस्रवको पहिचान कर उसे हेय माने, तथा बन्धको पहिचानकर उसको अहित माने, तथा संवर को पहिचानकर उसे उपादेय माने, तथा निर्जरा को पहिचान कर उसे हित का कारण माने, तथा मोक्षको पहिचानकर उसको अपना परमहित माने - ऐसा तत्त्वार्थश्रद्धानका अभिप्राय है; उससे उलटे अभिप्रायका नाम विपरीताभिनिवेश है। सच्चा तत्त्वार्थश्रद्धान होनेपर इसका अभाव होता है। इसलिये तत्त्वार्थश्रद्धान है सो विपरीताभिनिवेशरहित है ऐसा यहाँ कहा
है।
अथवा किसी के आभासमात्र तत्त्वार्थश्रद्धान होता है, परन्तु अभिप्राय में विपरीतपना नहीं छूटता। किसी प्रकार से पूर्वोक्त अभिप्रायसे अन्यथा अभिप्राय अंतरंग में पाया जाता है तो उसको सम्यग्दर्शन नहीं होता। जैसे द्रव्यलिंगी मुनि जिनवचनोंसे तत्त्वोंकि प्रतीति करे, परन्तु शरीराश्रित क्रियाओंमें अहंकार तथा पुण्यास्रव में उपादेयपना इत्यादि विपरीत अभिप्रायसे मिथ्यादृष्टि ही रहता है। इसलिये जो तत्त्वार्थश्रद्धान विपरीताभिनिवेश रहित है, वही समयग्दर्शन है।
इसप्रकार विपरीताभिनिवेशरहित जीवादि तत्त्वार्थों का श्रद्धानपना सो सम्यग्दर्शनका लक्षण है, सम्यग्दर्शन लक्ष्य है।
वही तत्त्वार्थसूत्रमें कहा है :
“ तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्” ।। १-२।।
तत्त्वार्थों का श्रद्धान वही सम्यग्दर्शन है।
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