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[मोक्षमार्गप्रकाशक
अपना साहुकारा प्रगट करे- ऐसा यह कार्य हुआ। सच्चेको तो जिस प्रकार दिगम्बरमें ग्रन्थों के और नाम रखे तथा अनुसारी पूर्व ग्रन्थोंका कहा; उसी प्रकार कहना योग्य था । अंगादिकके नाम रखकर गणधरकृतका भ्रम किसलिये उत्पन्न किया ? इसलिये गणधरके, पूर्वधारीके वचन नहीं हैं। तथा इन सूत्रोंमें विश्वास करने के अर्थ जो जिनमत अनुसार कथन है वह तो सत्य है ही; दिगम्बर भी उसी प्रकार कहते हैं।
तथा जो कल्पित रचना की है, उसमें पूर्वापर विरुद्धपना व प्रत्यक्षादि प्रमाणमें विरुद्धपना भासित होता है वही बतलाते हैं :
अन्यलिंगसे मुक्तिका निषेध
अन्यलिंगीके व गृहस्थके व स्त्रीके व चाण्डालादि शूद्रों के साक्षात मुक्तिकी प्राप्ति होना मानते हैं, सो बनता नहीं है। सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रकी एकता मोक्षमार्ग है; परन्तु वे सम्यग्दर्शनका स्वरूप तो ऐसा कहते हैं :
अरहन्तो महादेवो जावज्जीवं सुसाहणो गुरुणो।। जिणपण्णत्तं तत्तं ए सम्मत्तं मए गहियं ।।१।।
सो अन्यलिंगीके अरहन्तदेव, साधु, गुरु, जिनप्रणीततत्त्वका मानना किस प्रकार सम्भव है ? जब सम्यक्त्व भी न होगा तो मोक्ष कैसे होगा ?
यदि कहोगे- अंतरङ्गमें श्रद्धान होनेसे उनके सम्यक्त्व होता है; सोविपरीत लिंग धारककी प्रशंसादिक करने पर भी सम्यक्त्वको अतिचार कहा है, तो सच्चा श्रद्धान होनेके पश्चात् आप विपरीत लिंगका धारक कैसे रहेगा? श्रद्धान होनेके पश्चात् महाव्रतादिक अंगीकार करने पर सम्यक्चारित्र होता है, वह अन्यलिंगमें किसप्रकार बनेगा? यदि अन्यलिंगमें भी सम्यक्चारित्र होता है तो जैनलिंग अन्यलिंग समान हुआ, इसलिये अन्यलिंगीको मोक्ष कहना मिथ्या है।
गृहस्थमुक्ति निषेध
तथा गृहस्थ को मोक्ष कहते हैं; सो हिंसादिक सर्व सावद्ययोगका त्याग करने पर सम्यक्चारित्र होता है, तब सर्व सावद्ययोगका त्याग करने पर गृहस्थपना कैसे सम्भव है ? यदि कहोगे- अंतरंग त्याग हुआ है, तो यहाँ तो तीनों योग द्वारा त्याग करते हैं, तो काय द्वारा त्याग कैसे हुआ ? तथा बाह्य परिग्रहादिक रखने पर भी महाव्रत होते हैं; सो महाव्रतोंमें तो बाह्य त्याग करनेकी ही प्रतिज्ञा करते हैं, त्याग किये बिना महाव्रत नहीं होते । महाव्रत बिना छट्टा आदि गुणस्थान नहीं होता; तो फिर मोक्ष कैसे होगा? इसलिये गृहस्थको मोक्ष कहना मिथ्यावचन है ।
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