Book Title: Moksh marg prakashak
Author(s): Todarmal Pandit
Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust

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Page 285
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates सातवाँ अधिकार] [२४१ समाधान :- निचली अवस्थावाला उनका सर्वथा त्याग नहीं कर सकता, कोई दोष लगता है; इसलिये ऊपरकी प्रतिमा त्याग कहा है। निचली अवस्थामें जिस प्रकारका त्याग सम्भव हो; वैसा निचली अवस्थावाला भी करे; परन्तु जिस निचली अवस्थामें जो कार्य सम्भव ही नहीं है उसका करना तो कषायभावोंसे ही होता है। जैसे - कोई सप्तव्यसनका सेवन करता हो, और स्वस्त्रीका त्याग करे; तो कैसे हो सकता है ? यद्यपि स्वस्त्रीका त्याग करना धर्म है; तथापि पहले सप्तव्यसनका त्याग हो, तभी स्वस्त्रीका त्याग करना योग्य है। - इसीप्रकार अन्य जानना। तथा सर्व प्रकारसे धर्मको न जानता हो - ऐसा जीव किसी धर्मके अंगको मुख्य करके अन्य धर्मोको गौण करता है। जैसे - कई जीव दया-धर्मको मुख्य करके पूजाप्रभावनादि कार्यका उत्थापन करते हैं; कितने ही पूजा-प्रभावनादि धर्मको मुख्य करके हिंसादिकका भय नहीं रखते; कितने ही तपकी मुख्यतासे आर्त्तध्यानादिक करके भी उपवासादि करते हैं, तथा अपनेको तपस्वी मानकर निःशंक क्रोधादि करते हैं; कितने ही दानकी मुख्यतासे बहुत पाप करके भी धन उपार्जन करके दान देते हैं; कितने ही आरम्भ त्यागकी मुख्यतासे याचना आदि करते हैं; ' इत्यादि प्रकारसे किसी धर्मको मुख्य करके अन्य धर्मको नहीं गिनते तथा उसके आश्रयसे पापका आचरण करते हैं। उनका यह कार्य ऐसा हुआ जैसे अविवेकी व्यापारीको किसी व्यापारमें नफेके अर्थ अन्य प्रकारसे बहुत टोटा पड़ता है। चाहिये तो ऐसा कि जैसे व्यापारीका प्रयोजन नफा है, सर्व विचार कर जैसे नफा बहुत हो वैसा करे; उसी प्रकार ज्ञानीका प्रयोजन वीतरागभाव है, सर्व विचार कर जैसे वीतरागभाव बहुत हो वैसा करे, क्योंकि मूलधर्म वीतरागभाव है। इसीप्रकार अविवेकी जीव अन्यथा धर्म अंगीकार करते हैं; उनके तो सम्यक्चारित्रका आभास भी नहीं होता। तथा कितने ही जीव अणुव्रत-महाव्रतादिरूप यथार्थ आचरण करते हैं - और आचरणके अनुसार ही परिणाम हैं, कोई माया-लोभादिकका अभिप्राय नहीं है; उन्हें धर्म जानकर मोक्षके अर्थ उनका साधन करते हैं, किन्हीं स्वर्गादिकके भोगोंकी भी इच्छा नहीं रखते; परन्तु तत्त्वज्ञान पहले नहीं हुआ, इसलिये आपतो जानते हैं कि मैं मोक्षका साधन कर रहा हूँ; परन्तु जो मोक्षका साधन है उसे जानते भी नहीं, केवल स्वर्गादिकहीका साधन करते हैं। कोई मिसरीको अमृत जानकर भक्षण करे तो उससे अमृत का गुण तो १ यहाँ पंडित टोडरमलजी की हस्त लिखित प्रतिके हासियेमें इस प्रकार लिखा है - 'इहाँ स्नानादि शौचधर्मका कथन तथा लौकिक कार्य आएँ धर्म छोड़ी तहाँ लगि जाय तिनिका कथन लिखना है।' Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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