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सातवाँ अधिकार]
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गया, तब उसे भूलकर जैसी पहले अन्यथा प्रतीति थी वैसी ही स्वयमेव हो गई। तब उस शिक्षाकी प्रतीतिका अभाव हो जाता है। अथवा यथार्थ प्रतीति पहले तो की – पश्चात् न तो कोई अन्यथा विचार किया, न बहत काल हआ; परन्तु वैसे ही कर्मोदयसे होनहारके अनुसार स्वयमेव ही उस प्रतीतिका अभाव होकर अन्यथापना हुआ। ऐसे अनेक प्रकारसे उस शिक्षाकी यथार्थ प्रतीति का अभाव होता है। उसी प्रकार जीवको जिनदेवका तत्त्वादिरूप उपदेश हुआ; उसकी परीक्षा करके उसे ऐसे ही है' ऐसा श्रद्धान हुआ, पश्चात् जैसे पहले कहे थे वैसे अनेक प्रकारसे उस यथार्थ श्रद्धानका अभाव होता है। यह कथन स्थूलरूपसे बतलाया है; तारतम्यसे तो केवलज्ञानमें भासित होता है कि इस समय श्रद्धान है और इस समय नहीं है'; क्योंकि यहाँ मूलकारण मिथ्यात्व कर्म है। उसका उदय हो तब तो अन्य विचारादि कारण मिलें या न मिलें, स्वयमेव सम्यक् श्रद्धानका अभाव होता है। और उसका उदय न हो तब अन्य कारण मिलें या न मिलें, स्वयमेव सम्यक् श्रद्धान हो जाता है। सो ऐसी अंतरंग समय-समय सम्बन्धी सूक्ष्मदशा का जानना छद्मस्थको नहीं होता , इसलिये इसे अपनी मिथ्या-सम्यक् श्रद्धानरूप अवस्थाके तारतम्यका निश्चय नहीं हो सकता; केवलज्ञानमें भासित होता है। - इस अपेक्षा गुणस्थानोंका पलटना शास्त्रमें कहा है।
इस प्रकार जो सम्यक्त्वसे भ्रष्ट हो उसे सादिमिथ्यादृष्टि कहते हैं - उसे भी पुनः सम्यक्त्वकी प्राप्तिमें पूर्वोक्त पाँच लब्धियाँ होती हैं विशेष इतना कि यहाँ किसी जीवके दर्शनमोहकी तीनप्रकृतियोंकी सत्ता होती है, सो तीनोंका उपशम करके प्रथमोपशम सम्यक्त्वी होता है। अथवा किसीके सम्यक्त्व मोहनीयका उदय आता है, दो प्रकृतियोंका उदय नहीं होता, वह क्षयोपशम सम्यक्त्वी होता है; उसके गुणश्रेणी आदि क्रिया नहीं होती तथा अनिवृत्तिकरण नहीं होता। तथा किसीको मिश्रमोहनीयका उदय आता है, दोप्रकृतियोंका उदय नहीं होता, वह मिश्र गुणस्थानको प्राप्त होता है, उसके करण नहीं होते। - इस प्रकार सादि मिथ्यादृष्टिके मिथ्यात्व छूटने पर दशा होती है। क्षायिक सम्यक्त्वको वेदक सम्यग्दृष्टि ही प्राप्त करता है, इसलिये उसका कथन यहाँ नहीं किया है। इसप्रकार सादि मिथ्यादृष्टिका जघन्य तो मध्यम अन्तर्मुहूर्तमात्र, उत्कृष्ट किंचित् न्यून अर्द्धपुद्गलपरावर्तनमात्र काल जानना।
देखो, परिणामोंकी विचित्रता! कोई जीव तो ग्यारहवें गुणस्थानमें यथाख्यातचारित्र प्राप्त करके पुन: मिथ्यादृष्टि होकर किंचित् न्यून अर्द्धपुद्गलपरावर्तन काल पर्यन्त संसारमें रुलता है, और कोई नित्य निगोदसे निकलकर मनुष्य होकर मिथ्यात्व छूटने के
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