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[ मोक्षमार्गप्रकाशक
संयम होनेपर निरन्तर होती है। इसीसे यह मोक्षमार्गी हुआ है। इसलिये द्रव्यलिंगी मुनिको शास्त्रमें असंयत व देशसंयत सम्यग्दृष्टिसे हीन कहा है।
समयसार शास्त्रमें द्रव्यलिंगी मुनिकी हीनता गाथा, टीका और कलशोंमें प्रगट की है। तथा पंचास्तिकाय टीकामें जहाँ केवल व्यवहारावलम्बीका कथन किया है वहाँ व्यवहार पंचाचार होनेपर भी उसकी हीनता ही प्रगट की है। तथा प्रवचनसारमें संसारतत्त्व द्रव्यलिंगीको कहा है। परमात्मप्रकाशादि अन्य शास्त्रोंमें भी इस व्याख्यानको स्पष्ट किया है। द्रव्यलिंगीके जो जप, तप, शील, संयमादि क्रियाएँ पायी जाती हैं उन्हें भी इन शास्त्रों में जहाँ-तहाँ अकार्यकारी बतलाया है, सो वहाँ देख लेना । यहाँ ग्रन्थ बढ़ जानेके भयसे नहीं लिखते हैं ।
इसप्रकार केवल व्यवहाराभासके अवलम्बी मिथ्यादृष्टियोंका निरूपण किया ।
उभयाभासी मिथ्यादृष्टि
अब, जो निश्चय - व्यवहार दोनों नयोंके आभासका अवलम्बन लेते हैं ऐसे मिथ्यादृष्टियोंका निरूपण करते हैं।
जो जीव ऐसा मानते हैं कि जिनमतमें निश्चय - व्यवहार दोनों नय कहते हैं, इसलिये हमें उन दोनोंका अंगीकार करना चाहिये ऐसा विचारकर जैसा केवल निश्चयाभासके अवलम्बियोंका कथन किया था, वैसे तो निश्चयका अंगीकार करते हैं। और जैसे केवल व्यवहाराभासके अवलम्बियोंका कथन किया था, वैसे व्यवहारका अंगीकार करते हैं।
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यद्यपि इस प्रकार अंगीकार करनेमें दोनों नयोंके परस्पर विरोध है, तथापि करें क्या? सच्चा तो दोनों नयोंका स्वरूप भासित हुआ नहीं, और जिनमतमें दो नय कहे हैं उनमें से किसीको छोड़ा भी नहीं जाता; इसलिये भ्रमसहित दोनोंका साधन साधते हैं; वे जीव भी मिथ्यादृष्टि जानना।
अब इनकी प्रवृत्तिका विशेष बतलाते हैं :
अंतरंगमें आपने तो निर्धार करके यथावत् निश्चय - व्यवहार मोक्षमार्गको पहिचाना नहीं, जिनआज्ञा मानकर निश्चय - व्यवहाररूप मोक्षमार्ग दो प्रकार मानते हैं । सो मोक्षमार्ग दो नहीं हैं, मोक्षमार्गका निरूपण दो प्रकार है । जहाँ सच्चे मोक्षमार्गको मोक्षमार्ग निरूपित किया जाय सो ‘निश्चय मोक्षमार्ग' है। और जहाँ जो मोक्षमार्ग तो है नहीं, परन्तु मोक्षमार्गका निमित्त है व सहचारी है उसे उपचारसे मोक्षमार्ग कहा जाय सो ' व्यवहार मोक्षमार्ग' है। क्योंकि निश्चय-व्यवहारका सर्वत्र ऐसा ही लक्षण है। सच्चा निरूपण सो निश्चय, उपचार
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