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[ मोक्षमार्गप्रकाशक
अब इस दुःखके दूर होनेका उपाय यह जीव क्या करता है सो कहते हैं । इन्द्रियोंसे विषयोंका ग्रहण होनेपर मेरी इच्छा पूर्ण होगी ऐसा जानकर प्रथम तो नानाप्रकारके भोजनादिकोंसे इन्द्रियोंको प्रबल करता और ऐसा ही जानता है कि इन्द्रियोंके प्रबल रहनेसे मेरे विषय - ग्रहणकी शक्ति विशेष होती है। तथा वहाँ अनेक बाह्य कारण चाहिए उनका निमित्त मिलाता है ।
तथा इन्द्रियाँ हैं वे विषय सन्मुख होने पर उनको ग्रहण करती हैं, इसलिए अनेक बाह्य उपायों द्वारा विषयोंका तथा इन्द्रियोंका संयोग मिलाता है । नानाप्रकारके वस्त्रादिकका, भोजनादिकका, पुष्पादिकका, मन्दिर - आभूषणादिकका तथा गान - वादित्रादिकका संयोग मिलानेके अर्थ बहुत ही खेदखिन्न होता है।
तथा इन इन्द्रियोंके सन्मुख विषय रहता है तबतक उस विषयका किंचित् स्पष्ट जानपना रहता है, पश्चात् मन द्वारा स्मरणमात्र रह जाता है । काल व्यतीत होने पर स्मरण भी मंद होता जाता है, इसलिए उन विषयोंको अपने आधीन रखनेका उपाय करता है और शीघ्र - शीघ्र उनका ग्रहण किया करता है। तथा इन्द्रियोंके तो एक कालमें एक विषयका ही ग्रहण होता है, किन्तु यह बहुत ग्रहण करना चाहता है इसलिये आकुलित होकर शीघ्रशीघ्र एक विषयको छोड़कर अन्यको ग्रहण करता है, तथा उसे छोड़कर अन्यको ग्रहण करता है - ऐसे झपट्टे मारता है ।
इस प्रकार जो उपाय इसे भासित होते हैं सो करता है, परन्तु वे झूठे हैं। क्योंकि प्रथम तो इन सबका ऐसा ही होना अपने आधीन नहीं हैं, महान् कठिन है; तथा कदाचित् उदय अनुसार ऐसी ही विधि मिल जाये तो इन्द्रियोंको प्रबल करनेसे कहीं विषयग्रहणकी शक्ति बढ़ती नहीं है; वह शक्ति तो ज्ञान-दर्शन बढ़ाने पर बढ़ती है सो यह कर्मके क्षयोपशमके आधीन है। किसीका शरीर पुष्ट है उसके ऐसी शक्ति कम देखी जाती है, किसीका शरीर दुर्बल है उसके अधिक देखी जाती है। इसलिए भोजनादि द्वारा इन्द्रियाँ पुष्ट करनेसे कुछ सिद्धि है नहीं । कषायादि घटनेसे कर्मका क्षयोपशम होने पर ज्ञान - दर्शन बढ़े तब विषयग्रहणकी शक्ति बढ़ती है।
तथा विषयोंका जो संयोग मिलाता है वह बहुत काल तक नहीं रहता अथवा सर्व विषयों का संयोग मिलता ही नहीं है, इसलिये यह आकुलता बनी ही रहती है। तथा उन विषयोंको अपने आधीन रखकर शीघ्र - शीघ्र ग्रहण करता है, किन्तु वे आधीन रहते नहीं I वे भिन्न द्रव्य तो अपने आधीन परिणमित होते हैं या कर्मोदय के आधीन हैं। ऐसे कर्मका बन्ध यथायोग्य शुभभाव होने पर होता है और पश्चात् उदय आता है वह प्रत्यक्ष देखते हैं । अनेक उपाय करने पर भी कर्मके निमित्त बिना सामग्री नहीं मिलती।
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