Book Title: Moksh marg prakashak
Author(s): Todarmal Pandit
Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust

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Page 397
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates परमार्थवचनिका] [३५३ इन दोनोंका स्वरूप सर्वथा प्रकार तो केवलज्ञानगोचर है, अंशमात्र मति-श्रुतज्ञान ग्राह्य है, इसलिये सर्वथाप्रकार आगमी अध्यात्मी तो केवली, अंशमात्र मतिश्रुतज्ञानी, देशमात्र ज्ञाता अवधिज्ञानी मनःपर्ययज्ञानी; यह तीनों यथावस्थित ज्ञानप्रमाण न्यूनाधिकरूप जानना। मिथ्यादृष्टि जीव न आगमी न अध्यात्मी है। क्यों ? इसलिये कि कथन मात्र तो ग्रन्थपाठके बल से आगम-अध्यात्मका स्वरूप उपदेश मात्र कहता है, परन्तु आगमअध्यात्म का स्वरूप सम्यक्प्रकारसे नहीं जानता; इसलिये मूढ जीव न आगमी न अध्यात्मी, निर्वेदकत्वात्। अब मूढ तथा ज्ञानी जीवका विशेषपना और भी सुनो : ज्ञाता तो मोक्षमार्ग साधना जानता है, मूढ मोक्षमार्ग को साधना नहीं जानता। क्यों ? – इसलिये सुनों! मूढ जीव आगम पद्धति को व्यवहार कहता है, अध्यात्म पद्धतिको निश्चय कहता है; इसलिये आगम-अंगको एकान्तपने साधकर मोक्षमार्ग दिखलाता है, अध्यात्म-अंगको व्यवहार से नहीं जानता - यह मूढदृष्टिका स्वभाव है; उसे इसी प्रकार सूझता है। क्यों ? – इसलिये कि आगम-अंग बाह्यक्रियारूप प्रत्यक्ष प्रमाण है, उसका स्वरूप साधना सुगम। वह बाह्यक्रिया करता हुआ मूढ जीव अपनेको मोक्षका अधिकारी मानता है; अन्तर्गर्भित जो अध्यात्मरूप क्रिया वह अन्तर्दृष्टिग्राह्य है, वह क्रिया मूढ जीव नहीं जानता। अन्तर्दृष्टिके अभावसे अन्तक्रिया दृष्टिगोचर नहीं होती, इसलिये मिथ्यादृष्टि जीव मोक्षमार्ग साधनेमें असमर्थ है। अब सम्यग्दृष्टिका विचार सुनो : सम्यग्दृष्टि कौन है सो सुनो - संशय, विमोह, विभ्रम - ये तीन भाव जिसमें नहीं सो सम्यग्दृष्टि। संशय, विमोह, विभ्रम क्या है ? उसका स्वरूप दृष्टान्त द्वारा दिखलाते हैं सो सुनो - जैसे चार पुरुष किसी एक स्थान में खड़े थे। उन चारों के पास आकर किसी और पुरुषने एक सीपका टुकड़ा दिखाया और प्रत्येक , प्रत्येकसे प्रश्न किया कि यह क्या है ? – सीप है या चाँदी है ? प्रथम ही एक संशयवान पुरुष बोला – कुछ सुध (समझ) नहीं पड़ती कि यह सीप है या चाँदी है ? मेरी दृष्टिमें इसका निरधार नहीं होता। दूसरा विमोहवान पुरुष बोला – मुझे यह कुछ समझ नहीं है कि तुम सीप किससे कहते हो, चाँदी किससे कहते हो ? मेरी दृष्टिमें कुछ नहीं आता, इसलिये हम नहीं जानते कि तू क्या कहता है। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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