Book Title: Moksh marg prakashak
Author(s): Todarmal Pandit
Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust

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Page 381
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates नौवाँ अधिकार] [३३७ का उदय हो , वैसा उसके जानेपर नहीं होता। तथा जैसा प्रत्याख्यानके साथ संज्वलनका उदय हो, वैसा केवल संज्वलनका उदय नहीं होता। इसलिये अनन्तानुबंधीके जाने पर कुछ कषायों की मन्दता तो होती है, परन्तु ऐसी मन्दता नहीं होती जिससे कोई चारित्र नाम प्राप्त करे। क्योंकि कषायोंके असंख्यात लोकप्रमाण स्थान हैं; उनमें सर्वत्र पूर्वस्थानसे उत्तरस्थानमें मन्दता पायी जाती है; परन्तु व्यवहारसे उन स्थानोंमें तीन मर्यादाएँ कीं। आदि के बहुत स्थान तो असंयमरूप कहे, फिर कितने ही देश संयमरूप कहे, फिर कितने ही सकलसंयमरूप कहे। उनमें प्रथम गुणस्थानसे लेकर चतुर्थ गुणस्थान पर्यंत जो कषायके स्थान होते हैं वे सर्व असंयमहीके होते हैं। इसलिये कषायोंकी मन्दता होने पर भी चारित्र नाम नहीं पाते हैं। यद्यपि परमार्थसे कषायका घटना चारित्रका अंश है, तथापि व्यवहारसे जहाँ ऐसा कषायोंका घटना हो जिससे श्रावकधर्म या मुनिधर्मका अंगीकार हो, वहीं चारित्र नाम पाता है। सो असंयतमें ऐसे कषाय घटती नहीं हैं, इसलिये यहाँ असंयम कहा है। कषायोंका अधिक-हीनपना होने पर भी, जिस प्रकार प्रमत्तादि गुणस्थानोंमें सर्वत्र सकल संयम ही नाम पाता है, उसी प्रकार मिथ्यात्वादि असंयत पर्यंत गुणस्थानोंमें असंयम नाम पाता है। सर्वत्र असंयम की समानता नहीं जानना। यहाँ फिर प्रश्न है कि अनन्तानुबंधी सम्यक्त्व का घात नहीं करती है तो इसका उदय होनेपर सम्यक्त्वसे भ्रष्ट होकर सासादन गुणस्थानको कैसे प्राप्त करता है ? समाधान :- जैसे किसी मनुष्यके मनुष्यपर्याय नाशका कारण तीव्र रोग प्रगट हुआ हो, उसको मनुष्यपर्याय का छोड़ने वाला कहते हैं। तथा मनुष्यपना दूर होनेपर देवादिपर्याय हो, वह तो रोग अवस्थामें नहीं हुई। यहाँ मनुष्य ही का आयु है। उसी प्रकार सम्यक्त्वीके सम्यक्त्वके नाश का कारण अनन्तानुबंधीका उदय प्रगट हुआ, उसे सम्यक्त्वका विरोधक सासादन कहा। तथा सम्यक्त्वका अभाव होनेपर मिथ्यात्व होता है, वह तो सासादनमें नहीं हुआ। यहाँ उपशमसम्यक्त्वका ही काल है – ऐसा जानना। इसप्रकार अनन्तानुबंधी चतुष्टयकी सम्यक्त्व होनेपर अवस्था होती नहीं, इसलिये सात प्रकृतियोंके उपशमादिकसे भी सम्यक्त्व की प्राप्ति कही जाती है। फिर प्रश्न :- सम्यक्त्वमार्गणाके छह भेद किये हैं, सो किस प्रकार हैं ? समाधान :- सम्यक्त्वके तो भेद तीन ही हैं। तथा सम्यक्त्वके अभावरूप मिथ्यात्व है। दोनोंका मिश्रभाव सो मिश्र है। सम्यक्त्वका घातक भाव सो सासादन है। इस प्रकार सम्यक्त्वमार्गणासे जीव का विचार करने पर छह भेद कहे हैं। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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