Book Title: Moksh marg prakashak
Author(s): Todarmal Pandit
Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust

View full book text
Previous | Next

Page 301
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates सातवाँ अधिकार] [२५७ सत्यभूत निश्चयरत्नत्रयके कारणादिक हो। जिस प्रकार निश्चयरत्नत्रय सध जाये उसी प्रकार इन्हें साधे तो व्यवहारपना भी सम्भव हो; परन्तु इसे तो सत्यभूत निश्चयरत्नत्रयकी पहिचान ही हुई नहीं, तो यह इसप्रकार कैसे साध सकेगा? आज्ञानुसार हुआ देखा-देखी साधन करता है। इसलिये इसके निश्चय-व्यवहार मोक्षमार्ग नहीं हुआ। निश्चय-व्यवहार मोक्षमार्गका आगे निरूपण करेंगे, उसका साधन होनेपर ही मोक्षमार्ग होगा। इसप्रकार यह जीव निश्चयाभासको मानता-जानता है; परन्तु व्यवहार साधनको भी भला जानता है, इसलिये स्वच्छन्द होकर अशुभरूप नहीं प्रवर्तता है, व्रतादिक शुभोपयोगरूप प्रवर्तता है, इसलिये अन्तिम ग्रैवेयक पर्यन्त पदको प्राप्त करता है। तथा यदि निश्चयाभासकी प्रबलतासे अशुभरूप प्रवृत्ति हो जाये तो कुगति में भी गमन होता है। परिणामोंके अनुसार फल प्राप्त करता है, परन्तु संसारका ही भोक्ता रहता है; सच्चा मोक्षमार्ग पाये बिना सिद्धपदको नहीं प्राप्त करता है। इसप्रकार निश्चयाभास-व्यवहाराभास दोनोंके अवलम्बी मिथ्यादृष्टियोंका निरूपण किया। सम्यक्त्वसन्मुख मिथ्यादृष्टि अब, सम्यक्त्वके सन्मुख जो मिथ्यादृष्टि हैं उनका निरूपण करते हैं : कोई मन्दकषायादिका कारण पाकर ज्ञानावरणादि कर्मोंका क्षयोपशम हुआ, जिससे तत्त्वविचार करनेकी शक्ति हुई; तथा मोह मन्द हुआ, जिससे तत्त्वविचारमें उद्यम हुआ, और बाह्यनिमित्त देव-गुरु-शास्त्रादिकका हुआ, उनसे सच्चे उपदेशका लाभ हुआ। वहाँ अपने प्रयोजनभूत मोक्षमार्गके, देव-गुरु-धर्मादिकके, जीवादितत्त्वोंके, तथा निज-परके और अपनेको अहितकारी-हितकारी भावोंके - इत्यादिके उपदेशसे सावधान होकर ऐसा विचार किया कि अहो ! मुझे तो इन बातों की खबर ही नहीं, मैं भ्रमसे भूलकर प्राप्त पर्याय ही में तन्मय हुआ; परन्तु इस पर्यायकी तो थोड़े ही काल की स्थिति है; तथा यहाँ मुझे सर्व निमित्त मिले हैं, इसलिये मुझे इन बातोंको बराबर समझना चाहिये, क्योंकि इनमें तो मेरा ही प्रयोजन भासित होता है। ऐसा विचारकर जो उपदेश सुना उसके निर्धार करनेका उद्यम किया। वहाँ उद्देश, लक्षणनिर्देश और परीक्षा द्वारा उनका निर्धार होता है । इसलिये पहले तो उनके नाम सीखे, वह उद्देश हुआ। फिर उनके लक्षण जाने । फिर ऐसा सम्भवित है कि नहीं - ऐसे विचार सहित परीक्षा करने लगे। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403