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आठवाँ अधिकार]
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तथा करणानुयोगमें गणित आदि शास्त्रों की पद्धति मुख्य है; क्योंकि वहाँ द्रव्यक्षेत्र-काल-भावके प्रमाणादिकका निरूपण करते हैं; सो गणित ग्रन्थोंकि आम्नायसे उसका सुगम जानपना होता है।
तथा चरणानुयोगमें सुभाषित नीतिशास्त्रोंकी पद्धति मुख्य है; क्योंकि वहाँ आचरण कराना है; इसलिये लोकप्रवृत्ति के अनुसार नीतिमार्ग बतलानेपर वह आचरण करता है।
तथा द्रव्यानुयोगमें न्यायशास्त्रोंकि पद्धति मुख्य है; क्योंकि वहाँ निर्णय करनेका प्रयोजन है और न्यायशास्त्रोंमें निर्णय करनेका मार्ग दिखाया है।
इस प्रकार इन अनुयोगोंमें मुख्य पद्धति है और भी अनेक पद्धति सहित व्याख्यान इनमें पाये जाते हैं।
__ यहाँ कोई कहे - अलंकार, गणित, नीति, न्यायका ज्ञान तो पण्डितोंके होता है; तुच्छ बुद्धि समझे नहीं, इसलिये सीधा कथन क्यों नहीं किया ?
उत्तर :- शास्त्र हैं सो मुख्यरूप से पण्डितों और चतुरोंके अभ्यास करने योग्य हैं, यदि अलंकारादि आम्नाय सहित कथन हो तो उनका मन लगे। तथा जो तुच्छ बुद्धि हैं उनको पण्डित समझादें, और जो नहीं समझ सकें तो उन्हें मुँहसे सीधा ही कथन कहें। परन्तु ग्रन्थोंमें सीधा कथन लिखनेसे विशेषबुद्धि जीव उनके अभ्यासमें विशेष नहीं प्रवर्ते, इसलिये अलंकारादि आम्नाय सहित करते हैं।
इसप्रकार इन चार अनुयोगोंका निरूपण किया। तथा जैनमत में बहुत शास्त्र तो इन चारों अनुयोगोंमें गर्भित हैं।
तथा व्याकरण, न्याय, छन्द, कोषादिक शास्त्र व वैद्यक, ज्योतिष, मन्त्रादि शास्त्र भी जिनमतमें पाये जाते हैं। उनका क्या प्रयोजन है सो सुनो :
व्याकरण-न्यायादि शास्त्रोंका प्रयोजन व्याकरण-न्यायादिकका अभ्यास होने पर अनुयोगरूप शास्त्रोंका अभ्यास हो सकता है; इसलिये व्याकरणादि शास्त्र कहें हैं।
कोई कहे – भाषारूप सीधा निरूपण करते तो व्याकरणादि का क्या प्रयोजन था ?
उत्तर :- भाषातो अपभ्रंशरूप अशुद्धवाणी है, देश-देशमें और-और हैं; वहाँ महन्त पुरुष शास्त्रोंमें ऐसी रचना कैसे करें ? तथा व्याकरण-न्यायादि द्वारा जैसे यथार्थ सूक्ष्म अर्थका निरूपण होता हैवैसा सीधी भाषामें नहीं हो सकता; इसलिये व्याकरणादिकी आम्नायसे वर्णन किया है। सो अपनी बुद्धिके अनुसार थोड़ा बहुत इनका अभ्यास करके अनुयोगरूप प्रयोजनभूत शास्त्रोंका अभ्यास करना।
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