Book Title: Uvavai Suttam
Author(s): Chotelal Yati
Publisher: Jivan Karyalay
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उववाई सूत्तं मझेणं जेणेव कोणियस रस्णो गिहे जेणेव बाहिरिया उवठ्ठाणसाला जेणेव कूणिए राया भंभः सारपुत्ते तेणेव उवागच्छइ तेणेव उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कह जएणं विजएणं वद्धावेइ २ एवं वयासी:
जस्स णं देवाणुप्पिया दंसणं कंखंति जस्स णं देवाणुप्पिया दंसणं पीहंति जस्स णं देवाणुपिया दसणं पत्थंति जस्स णं देवाणुप्पिया दंसणं अभिलसंति जस्स णं देवाणुप्पिया णामगोयस्सवि सवणयाए हतु जाव हियया भवंति, से णं समणे भगवं महावीरे पुब्वाणुपुन्दि चरमाणे गामाणुग्गामं दुइज्जमाणे चंपाए णयरीए उवणगरग्गामं उवागए चंपं णगरि पुरणभई चेइयं समोसरिउकामे, तं एवं देवाणुप्पियाणं पियट्टयाए पियं णिवेदेमि, पियं ते भवउ ॥
( सू० १२) तए णं से कूणिए राया भंभसारपुत्ते तस्स पवित्तिवाउयस्स अंतिए एयमलु सोचा निसम्म हतु जाव हियए [ ] वियसियवरकमलणयणवयणे पयलिवरकडगतुडियकेयूरमउडकुंडलहारविरायंतरइयवच्छे पालंबपलं. बमाणघोलंतभूसणधरे ससंभभ तुरियं चवलं नरिंदे,

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