Book Title: Uvavai Suttam
Author(s): Chotelal Yati
Publisher: Jivan Karyalay
View full book text
________________
वाई सूत्तं
रहाणगसीयायवदंसमसग सेयजल्ल मलपंकपरितावेणं अप्पतरो वा भुज्जतरो वा कालं श्रप्पाणं परिकिलेसंति पतरो वा भुज्जतरो वा कालं अप्पाणं परिकिलेसित्ता कालमासे कालं किच्चा अयरेसु वाणमंतरेसु देवलोएस देवत्ताए उववत्तारो भवति, तहिं तेसिं गई तहिं तेसिं ठिई तर्हि तेसिं उववाए पण्णत्ते । तेसि णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! दसवाससहस्साइं ठिई पप्णत्ता, अस्थि णं भंते! तेसिं देवाणं इड्ढी वा जुई वा जसे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कारिपरक्कमे इ वा ? हंता अस्थि । ते णं भंते ! देवा पर लोगस्सआराहगा ? णो इणडे समठ्ठे || ५ ॥
६५
से जे इमे गामागरणयरणिगमरायहाणिखेडकब्बडमडंबदोणमुह पट्टणागर संवाह सरिणवेसेसु मणुया भवंति, तं जहा -- डुबद्धगा णित्रलबद्धगा हडिबद्धगा चारगबद्धगा हत्थादिणगा पाय छिरणगा कण्णछिरणगा एक छिरणगा ओड छिरणगा जिन्भछिण्णगा सीसछिण्णगा मुखछिरणगा मज्झछिरणगावेकच्छणिगा हियउ प्पाडियगा णयणुप्पाडियगा दसप्पाडियगा वसणुष्पाडियगा गेवछिण्णगा तंडुलछिएणगा कागणिमंसक्ख वियगा

Page Navigation
1 ... 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110