Book Title: Uvavai Suttam
Author(s): Chotelal Yati
Publisher: Jivan Karyalay
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उववाई सूत्तं.
वा, कालो समए वा प्रावलियाए वा जाव [ ] अयणे वा अण्णयरे वा, दीहकालसंजोगे, भावो कोहे वा माणे वा मायाए वा लोहे वा भए वा हासे वा, एवं तेसिं ण भवइ । .. - ते णं भगवंतो वासावासवज्जं अह गिम्हहेमंतियाणि मासाणि गामे एगराइया णयरे पंचराइया वासीचन्दण समाणकप्पा समलेकंचणा समसुहदुक्खा इहलोगपरलोगअप्पडिबद्धा संसार'पारगामी कम्मणिग्घायणठ्ठाए अम्भुठ्ठिया विहरंति []।. .
(सू. १८) तेसि णं भगवंताणं एएणं विहारेणं विहरमाणाणं इमे एयारूवे अभिंतरबाहिरए तवोवहाणे होत्था, तं जहा-अभितरए (वि) छबिहे, बाहिरए वि छव्विहे ॥ . .: (सू. १६) से किं तं बाहिरए ? २ छविहे. परणत्ते, तं जहा-(१)अणसणे (२) उणो (ोवमो) अरिया (३) भिक्खायरिया (४) रसपरिच्चाए (५) कायकिलेसे (३) पडिसंलीणया।से किं तंत्रणसणे ? २ दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-(१) इसरिए य (२) प्रवकहिए य । से किं तं इत्तरिए ? अणेगविहे पएणते, तं जहा-(१) चउत्थभत्ते (२). छात

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