Book Title: Uvavai Suttam
Author(s): Chotelal Yati
Publisher: Jivan Karyalay

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Page 81
________________ उववाई सूत्तं कालमासे कालं किच्चा बंभलोए कप्पे देवत्ताए उववरणा। तहिं तेसिं गई दससागरोवमाइं ठिई पएणत्ता, परलोगस्स पाराहगा, सेसं तं चेव ॥१३॥ __(सू० ४०) बहुजणे णं भंते ! अण्णमएणस्स एवमाइक्खह एवं भासइ एवं परूवेइ । “एवं खलु. अंबडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए पाहा. रमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ, से कहमेयं भंते ! एवं?"। "गोयमा ! ज णं से बहुजणो अण्णमएणस्स एवमाइक्खइ जाव एवं परूवेइ-'एवं खलु अम्मडे. परिव्वायए कंपिल्लपुरे जाव घरसए वसहि उवेइ, सच्चे णं एसमठे, अहंपिणं गोयमा! एवमाइक्खामि जाव एवं परूवेमि ‘एवं खलु अम्मडे परिव्वायए जाव वसहि उवेई"। से केण?णं भंते! एवं वुच्चइ-अम्मडे परिव्वायए जाव वसहिं उवेइ ? "गोयमा ! अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स पगइभद्दयाए जाव विणीययाए छटुंछ?णं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाम्रो पगिझिय २ सूराभिः मुहस्स अायावणभूमीए पायावेमाणस्स सुभेणं परिणामेणं [ ] पसत्थाहिं. लेसाहिं विसुज्झमा.

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