Book Title: Uvavai Suttam
Author(s): Chotelal Yati
Publisher: Jivan Karyalay

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Page 46
________________ ४२ उववाई सूत्तं णमंस्सित्ता पच्चासणे गाइदूरे सुस्सूसमाणा णमं- . समाणा अभिमुहाविणएणं पंजलिउडा पज्जुवासंति॥ (सू० २८) तए णं से पवित्तिवाउए इमीसे कहाए लद्धठे समाणे हतुट्ठ जाव हियए एहाए जाव अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे सयानो गिहाश्रो पडिणिक्खमइ, सयानो गिहारो पडिणिक्खमित्ता चंपाणयरिं मझमज्झेणं जेणेव बाहिरिया सव्वेव हेठ्ठिला वत्तव्वया जाव णिसीयइ णिसोइत्ता तस्स पवित्तिवाउयस्स अद्धत्तेरस सयसहस्साइंपीइदाणं दलयइ, २ त्ता सकारेइ सम्माणेइ सकारित्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ ॥ (सू० २६ ) तए णं से कूणिए राया भंभसारपुत्ते बलवाउयं आमंतेइ २ त्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! श्राभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेहि, हयगयरहपवरजोहकलियं च चाउरंगिणिं सेणं सण्णाहेहि, सुभद्दापमुहाण य देवीणं बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए पाडिएकपाडिएकाई जत्ताभिमुहाई जुत्ताई जाणाईउवठ्ठवेह चंपं णयरिं सभितरबाहिरियं [ ] आसित्तसित्तसुइसम्मट्टरत्यंतरावणवीहियं मंचाइमंचकलियं णाणाविहरागउच्छियज्झयपडागाइपडागमंडियं

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