Book Title: Uvavai Suttam
Author(s): Chotelal Yati
Publisher: Jivan Karyalay
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उववाई सूत्तं
जह णरगा गम्मती जे णरगाजा यवेयणाणरए । सारीरमाणुसाइंदुक्खाइं तिरिक्खजोणीए॥१॥ माणुस्सं च अणिचं वाहिजरामरणवेयणापउरं । देवे य देवलोए देविडिंढ देवसोक्खाई ॥२॥ गरगं तिरिक्खजोणिं माणुसभावं च देवलोअं च। सिद्ध असिद्धवसहिं छज्जीवणियं परिकहेइ ॥३॥ जह जीवा बभंती मुच्चंती जह य संकिलिस्संति। जह दुक्खाणं अंतं करंति केई अपडिबद्धा ॥४॥ अदुहट्टियचित्ता जह जीवा दुक्खसागरमुर्विति। जह वेरग्गमुवमया कम्मसमुग्गं विहाडंति ॥५॥ जह रागेण कडाणं कम्माणं पावगो, फलविवागो। जह य परिहीणकम्मा सिद्धा सिद्धालयमुर्विति ॥६॥
तमेव धम्मं दुविहं प्राइक्खइ, तं जहा-अगारधम्म अणगारधम्मं च। अणगारधम्मो ताव-इह खलु सव्वो सव्वत्ताए मुन्डे भवित्ता अगारात्रो अणगारियं पव्वइयस्स सव्वानो पाणाइवायाओ वेरमणं, सब्बानो मुसावायाो वेरमणं, सब्बानो अदिण्णादाणाश्रो वेरमणं, सब्बाओ मेहणाश्रो मेरमणं सब्बाश्रो परिग्गहारो वेरमणं, सब्बानो

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