Book Title: Uvavai Suttam
Author(s): Chotelal Yati
Publisher: Jivan Karyalay

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Page 89
________________ उववाई सूत्तं ८५ सेणं भविस्सइ अणगारे भगवंते ईरियासमिए जाव गुत्तबंभयारी। .. तस्स णं भगवंतस्स एएणं विहारेणं विहरमाणस्स अणंते अणुत्तरे णिव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरणाणदंसणे समुप्पजहिति । .. [ ] तए णं से दढपइण्णे केवली बहई वासाई केवलिपरियागं पाउणिहिति पाउणिहित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता सढि भत्ताइं अणसणाए छेदित्ता जस्सहाए कीरइ णग्गभावे मुंडभावे अण्हाणए अदंतवणए केसलोए बंभचेरवासे अच्छत्तगं अणोवाहणगं भूमिसेजा फलहसेजा कट्ठसेज्जा परघरपवेसोलद्धावल, वित्तीए माणावमाणणाश्रो परेहिं हीलणाश्रो खिसणाओ निंदणाप्रो मरहणाश्रो तालणाश्रो तज्जणाश्रो परिभवणाप्रो पव्वहणाो उच्चाश्या गामकंटगा बावीसं परीसहोवसग्गा अहियासिज्जंति तमट्ठमाराहित्ता चरिमेहिं उस्सासणिस्सासेहिं सिज्झिहिति बुझिहिति मुच्चिहिति परिणिव्या हिति सव्वदुक्खाणमंतं करेहिति ॥ १४ ॥ (सू० ४१ ) सेजे इमे गामागर जाव सण्णिवेसेसु पब्वइया समणा भवंति, तं जहा:-आय

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