Book Title: Uvavai Suttam
Author(s): Chotelal Yati
Publisher: Jivan Karyalay

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Page 62
________________ ५८ उबवाई सूत्तं सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे णिव्वाणमग्गे णिज्जाणमग्गे अवितहमविसंधि सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे इहटिया जीवा सिझति वुझंति मुच्चंति परिणिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करंति । एगच्चा पुण एगेभयंतारो पुव्वकम्मावसेसेणं अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति, महड्ढिएसु जाव महासुक्खेसु दूरंगइएसु चिरहिईएसु । ते णं तत्थ देवा भवंति महिड्ढिया जाव चिरहिइया हारविराइयवच्छा जाव [ ] पभासमाणा कप्पोवगा गतिकल्लाणा ठिइ. कल्लाणा आगमेसिभद्दा जाव पडिरूवा। तमाइक्खइ एवं खलु चरहिं ठाणेहिं जीवा रइयत्ताए कम्मं पकरंति, णेरइयत्ताए कम्मं पकरेत्ता रइएम उववज्जंति, तं जहा-१ महारंभयाए २ महापरिग्गहयाए ३ पंचिंदियवहेणं ४ कुणिमाहारेणं, एवं एएणं अभिलावणं । तिरिक्खजोणि एसु (१) माह ल्लयाए णियडिल्लयाए (२) अलियवयणेणं (३) उकचणयाए (४) वंचणयाए । मणुस्सेसु-(१) पगइभद्दयाए (२) पगइविणीययाए (३) साणुक्कोसयाए (४) अमच्छरिययाए । देवेसु-(१)सरागसंजमेणं (२) संजमासंजमेणं (३) अकामणिजराए (४) बालसवोकम्मेणं, तमाइक्खड:

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