Book Title: Uvavai Suttam
Author(s): Chotelal Yati
Publisher: Jivan Karyalay
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३२
उत्रबाई सत्तं छिन्नकिरिए अणियही ।सुक्कस्त णं माणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता, तं जहा-(१) विवेगे (२) विउसग्गे (३) अवहे ( ४ ) असम्मोहे । सुक्कस्स णं माणस्स चत्तारि आलंबणा पण्णता, तं जहा(१) खंती ( २ ) मुत्तो ( ३ ) अजवे (४) महवे । सुक्कस्सणं झाणस्सचत्तारीअणुप्पेहाम्रो पण्णत्ताओ, तं जहा ( १ ) अवायाणुप्पेहा ( २ ) असुभाणुप्पेहा ( ३.) अणंतवित्तियाणुप्पेहा (४) विप्परिणामाणुप्पेहा, से तं झाणे। . . . . ... .से किं तं विउस्सग्गे? २ दुविहे पण्णत्ते, तं जहा (१) व्वविउस्सग्गे (२) भावउविस्सग्गे य । से किं तं दव्वविउस्सग्गे ? २ चउविहे पएणत्ते, तंजहा (१) सरीरविउस्सग्गे (२) गणविउस्सग्गे (३) उवहिविउस्सग्गे ( ४ ) भत्त पाण विउस्सग्गे, से तं दव्यविउस्सग्गे से किं तंभावविउस्सग्गे? २ तिविहे पएणत्ते, तं जहा (१) कसायविउस्सग्गे (२) संसारविउस्सग्गे ( ३) कम्मविउस्सग्गे। से किं तं कसायविउस्सग्गे ? २ चउविहे पण्णत्ते, तं जहा :- (१) कोहकसायविउस्सग्गे (२) माणकसायवि उस्सग्गे (३) मायाकसायविउस्सग्गे (४) खोहकसायविउस्सग्गे, से तं कसायविउस्सग्गे।

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