Book Title: Uvavai Suttam
Author(s): Chotelal Yati
Publisher: Jivan Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 37
________________ उववाई सूत्तं से किं तं संसारविउस्सग्गे ? २ चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा:-(१) णेरइयसंसारविउस्सग्गे (२) तिरियसंसारविउस्सग्गे (३) मणुयसंसारविउस्सग्गे (४) देवसंसारविउसग्गे, से तं संसारविउस्सग्गे, से किं तं कम्मविउस्सग्गे? २ अहविहे पएणत्ते, तं जहा:-(१) णाणावरणिज्जकम्मविउस्सग्गे ( २) दरिसणावरणिज्जकम्मविउस्सग्गे (३) वेयणिज्जकम्मविउस्सग्गे (४) मोहणीयकम्मविउस्सगे (५) आउयकम्मविउस्सग्गे (६) णामकम्मविउस्सग्गे (७) गोयकम्मविउस्सग्गे (८) अंतरायकम्भविउस्सग्गे, से तं कम्मविउ. स्सग्गे, संतं भावविउस्सग्गे से तं विउस्सग्गे।। (सू० २१) तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवो महावीरस्स बहवे अणगारा भगवंतो अप्पेगईया अायारधरा जाव विवागसुयधरा तत्य तत्थ तहिं तहिं देसे देसे गच्छागच्छि गुम्मागुम्मि फड्डाफड्डिं अप्पेगइया वायंति अप्पेगइया पडिपुच्छति अप्पेगइया परियमुति अप्पेगहया अणुप्पेहंति अप्पेगइया अक्खेवणीओ विक्खेवणीनो संवेयणीओ णिव्वेयणीओ बउविहानो कहानी कहंति अप्पेगइया उड्ढंजाणू

Loading...

Page Navigation
1 ... 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110