Book Title: Uvavai Suttam
Author(s): Chotelal Yati
Publisher: Jivan Karyalay

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Page 65
________________ उववाई सूत्तं सोचा णिसम्म हतु जाव हियया उठाए उठेइ, २ त्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ २ त्ता वंदइ णमंसइ वंदित्ता णमंसित्ता कत्थेगइया मुन्डे भवित्ता अगाराश्रो अणगारियं पव्वइया, अत्थेगइया पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइय दुवालसविह गिहिधम्म पडिवण्णा ।। __ अवसेमा णं परिसा समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी " सुत्रक्खाए ते भंते ! निग्गंथे पावयणे एवं सुपएणत्ते सुभासिए सुविणीए सुभाविए अणुत्तरे ते भंते ! निग्गंथे पावयणे, धम्म णं प्राइक्खमाणा तुम्भे उवसमं आइक्खह, उवसमं श्राइक्खमाणा विवेगं प्राइक्खह, विवेगंाइक्खमाणा वेरमणं आइक्खमाणा अकरणं पावाणं कम्माणं आइक्खह, णत्थि णं अण्णे केइ समणे वा माहणे वा जे एरिसं धम्ममाइक्खित्तए, किमंग पुण एत्तो उत्तरतरं?" एवं वदित्ता जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया ॥ (सूत्र३६) तए णं से कूणिए राया भंभसारपुत्ते समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए धम्मं सोचा

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