Book Title: Uvavai Suttam
Author(s): Chotelal Yati
Publisher: Jivan Karyalay
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वाई सूतं
तए णं तेसिं परिव्वायगाणं तीसे अगामियाए छिण्णोवायाए दीहमद्वार अडवीए कंचि देनंतरमणुपत्ताणं से पुव्वग्गहिए उदए अणुपुवेणं परिभुंजमा भी ।
तए णं ते परिव्वाया झीणोद्गा समाणा तरहाए पारम्भमाणा २ उद्गदातारमपस्समाणा रणमरणं सद्दावेंति सद्दावित्ता एवं वयासी:
" एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्ह इमीसे अगामित्राए जाव अडवीए कंचि देसंतरमणुपत्ताणं से उदए जाव झीणे तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! म्ह इसे गामियाए जाव अडवीए उद्गदातारस्स सव्वश्र समंता मग्गणगवेसणं करितए" त्ति कट्टु अरणमरणस्स अंतिए एयमहं पडिसुणति २ त्ता ती अगामिय। ए जाव अडवीए उद्गदातारस्स सव्व समता मग्गणगवेसणं करेई करिता उद्गदातारमलभमाणा दोचंपि रणमरणं सहावेन्ति सद्दावेत्ता एवं वयासी:
"इह णं देवाप्पिया ! उद्गदातारो णत्थि तं णो खलु कप्पइ अम्ह अदिष्णं गिरिहत्तए [ ] अदिणं साइजित्तए, तं मा णं म्हे इयाणिं श्रावइकालं पि दिणं गिरहामो दिरणं साइज्जामो
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