Book Title: Uvavai Suttam
Author(s): Chotelal Yati
Publisher: Jivan Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 92
________________ बवाई सूतं २ ता तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे श्रभि गिएसु देवे देवत्ताए उववत्तारो भवति, तेहिं तेसिं गई बावीसं सागरोवमाई ठिई परलोगस्स णाराहगा, सेसं तं चेव ।। १८ ।। ८८ सेज्जे इमे गामागर जाव सरिणवेसेसु पिरहगा भवंति, तं जहा - १ बहुरया २ जीव पएसिया ३ अव्वन्तिया ४ सामुच्छेइया ५ दोकिरिया ६ तेरासिया ७ बद्धिया इच्चेते सत्त पवयन्हिगा केवललंच रियालिंगसामण्णा मिच्छद्दिठ्ठी बहूहिं असम्भावुभावणाहिं मिच्छत्ताभिणिवेसेहि य अप्पाणं च परं च तदुभयंचबुग्गा हेमाणा वुप्पाएमाण विहरिता बहूई वासाई सामरणपरियागं पाउणति २ कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं उवरिमेसु गेबेज्जेसु देवत्ताए उववन्तारो भवंति । तेहिं तेसिं गई एकतीसं सागरोवमाई ठिई परलोगस्स अणाराहगा सेसं तं चैव ॥ १६ ॥ से ज्जे इमे गामागर जाव सरिवेसेसु मणुया भवति, तं जहा - अप्पारंभा अपरिग्गहा धम्मिया

Loading...

Page Navigation
1 ... 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110